गुड़ियों के देश में | Gudiyon Ke Desh Main
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.34 MB
कुल पष्ठ :
142
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about प्रमोदचन्द्र शुक्ल - Pramod Chandra Shukla
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तोक्यो सूर्य की किरणों ने मुभ्दे जगाया । पर कैदल चार-साढे चार घंटे की कच्ची नींद सै पिछले दिन की शरीर भौर मन की थकावट दूर नहीं हो सकी । मैं काफी देर तक लेटा रहा । बहुत से अस्पप्ट विचारों के ततु उठते और टूट जाते थे । लेटे-लेटे ख़िडकी के पदों को जैसे हो हटाया तो सामने ऊँची दीवार पर लगी गोलाकार घड़ो को मिनटों को सुई को भटके के साथ एक से दूसरे मिनट पर लाँघते देख । समय अपनी अविरत गति से वहां जा रहा है । नये लोक में मपनी जानी-पहुचानी धरती और लोगों हे हड़ारो कोस दूर पृथ्वी और अकाश के वीच निदंकु-से तोदयों की उस ऊची इमारत की छठी मजिल के एक कमरे में अकेला और अनजान एक मीठा-सा दर्द लिए लेटा था । अनजाने लोगो के बीच अनदेखी जगहों पर जाने की सभावनाओं से शरीर मे एक हल्की-सी गुदगुदी उठ रही थी । कमरे के वाहर पद-चाप स्पप्ट सुनाई पड रही थी । अदसपास के दरवाज़ों के खुलने या बद होने की भावाज्ध भी भा रही यो । देखते-देखते घड़ी की सुई ने एक घंटे का सफर तय कर लिया। मैं उठा गौर खिड़की के बाहर भाकिते लगा । नोचे लंबी-चौड़ी चौपड-सी थिछी सड़कों पर नीली-पीली गौर सुख हरे रंग की कारो का ताँता लग रहा था । हर कार हिरंगी हर एक पर गोलाकार निद्याम तेज्ञ रफ़दार और सहसा ब्रेक लगने की चीस् । उनकी तड़क- भड़क के सामते दिल्ली की काले और पोले रंग की टविसयाँ फीकी लगती हैं । बसें मेरे कमरे के ठीक नीचे वने वस-स्टैण्ड पर आकर रुक रही थी । वहां खड़े छोटे कद के लादमियों औरतों बोर फूदकते दच्चों को लेकर जागे दढ जाती थीं 1 बेस-स्टैंण्ड के पांव काली पतलून भर सफेद वनियाव पहने मुंह में सिग्रेट दवाये एक लड़का कांड लगा रहा था। उसकी पोशाक हाव-भाव या कपड़ों से यह अनुमान लगाना कठिन था कि वह काइ लगाने का काम करता है । उसे देखकर मुक्त अपनी कोठी में भाड _ लगाने वाले एक भंँगी लड़के की थाद था गई। 17-18 साल का भरे बदन और सुदर चेहरे व वह लड़का सिर के बालों की पटिटयों को बहुत सेंदार कर आादा था । बड़ी सुरीली आवाज में दे भरे फ़िल्मी गाने गाता था । उसकी पुरानी खाकी पत्लून में कई टॉक लगे रहते थे । रंगीन बुद्द-शर्ट भी फटी रहती यी । उसके इस घनाव-सिंगार और मस्ती के प्रति हमारे
User Reviews
No Reviews | Add Yours...