आदि तुर्क कालीन भारत | Aadi Turak Kalin Bharat
श्रेणी : इतिहास / History, समकालीन / Contemporary
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8.38 MB
कुल पष्ठ :
344
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सैयद अतहर अब्बास रिज़वी - Saiyad Athar Abbas Rizvi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)त्वकाने नासिरी डे सुल्तान नासिरहीन राजसिंहासन परे झारूढ हुमा तो मिनहाज के माग्य का सितारा चरम सीमा पर पहुँच गया । उद्ुग्र याँ वो जो उसवा विशेष झाशयदाता था राजकाज के समस्त अधिकार प्राप्त हो गये थे । वह मिनहाज सिराज वो विद्येष प्रोत्साहन देता था । उसने अपने इतिहास में प्रयेक स्थान पर सान वी भूरि प्रशसा की है। ६४७ हिं० १२४६-५० ई० में उसे अपनी बहिन के जो कि खुरासान में थी थी सुचना मिली । उसने उलुग़ खाँ मी सेवा में उसके वष्टों वा बृत्तात दिया । खान ने उसे एक घोड़ा और जिवगम्त तथा गाँव प्रदान किये । उलुग खाँ ने सुल्तान से भी उसवी सिफारिश की । सुल्तान ने उसे ४० गुलाम सथा १०० सचर प्रदान किये । मिनहाज में यह सब सामान खुरासान भेजने हेठु २६ जिलहिस्जा ६४७ हि० ४ धप्रेल १२५० ई० की देहली से सुल्तान की शोर प्रस्थान दिया । ६ रवी-उल-भव्वल ६४८ हिल ८ जूते १९४० ई० को बह सुल्तान पहुंचा शरीर वहाँ से सब सामान खुरासान मिजवाया । २२ ६४८ हि २२ सितम्बर १२४० ई० को वह देहली वापस भाया । १० जमादी-उत-ब्रव्वल ६४९ हि० ३१ जुलाई १२५१ ई० को उसे काडिये- ममालिक का पद प्रदान हुआा किस्तु इसी बीच में एमादुद्दीन रंहान वे पड्यन्त के फ्लस्वहुप सा को समस्त अधिकारों से वचिंत कर दिया गया । रजव ६४१ हि? श्रगस्त-मितम्वर १२५३ ई० में मिनहाज सिराज से भी उसवा पद लेकर काज़ी शम्सुद्दीन बहराइची वी दे दिया गया बिल्तु € ज़िलहिज्जा ध५२ हि २० जनवरी १२४५४ ई० को उलछुग सी को फिर से पहले को भाँति प्रास हो गये । मिनहाज से इस बीच में उलुय साँ वे श्रन्य सहायती के समान बहुत व भोगे । ७ रवी ६५३ हि १६ प्रप्रल १२५५ ई० को वह तीसरी वार राज्य के बाद के पद पर नियुत्त हुग्रा 17 उसने शव्वाल ६५८ हि १२६० ई० तक का हाव श्रपते इतिहास में लिखा है यद्यपि वह इसके उपरान्त भी जीवित रहा उसने श्रपने इतिहास में इस तिथि के बाद का कोई हाल नहीं लिखा । वरनी ने उसका नाम वल्वन के राज्य-वाल कै उन की सूची में लिखा है जी शम्सी काल में मी विधमान थे । मिगहाज श्रपने समय का बहुत बडा विद्वान था । जय वह ग्वालियर से देहली नी मोर जाने लगा तो ताजुद्दीन सजर ने उसवी पुस्तकों के दो बक्स ग्वालियर से महावन पहुचाये । इससे ज्ञात होता है कि वह शपने साथ पुस्तकों की बहुत बढ़ी सख्या हिन्दुस्तान कक हा अधिकतर तुर्वे अमीर उसके मित्र थे । इसी सुल्तान शम्सुद्दीन की मुख के जादू उयल पुथल हुई भश्रोर जल्दी-जल्दी सुल्तान बदलने उससे उसे कोई बिशेप हानि हैं पहुँची । वी झपा से वह राज्य का सर्वोच्च पदाधिवयरी वन गया था । नासिरी जो सुल्तान नासिरददीन महसूदशाह वो समपित की गई निम्नॉक्ति ववक्ो भ्थ्याय में विभाजित हैं. १ झादम से मुहम्मद साहब तक का हाल २ सिम चार खलीफा ३ वनी उमस्या ४ बनी भ्रब्वास ५ पारम्म के ईरानी बादशाह 8 छुना तथा यमन के बादयाह ७ ताहिरी वश ८ सफफारी € सामानी बदय है. तबराते नासिरी पृष्ठ र८६ | #. पृष्ठ रह | सर पृ ईद रह ये शा पृष्ठ । न वर
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