टालस्टाय की आत्मकहानी | Taalstaay Kii Aatmkahaanii

Book Image : टालस्टाय की आत्मकहानी  - Taalstaay Kii Aatmkahaanii

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about उमराव सिंह कारुणिक - Umrav Singh Karunik

Add Infomation AboutUmrav Singh Karunik

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
थ थक रोम्सदाय का | छु न लाल ली ही ही ली गा लकी कक बनाम हा अं ने हर जा ७ हर हज हू. जा जा बा नल नाथ न काना न नल कला सम १८ १ ई० के फरवरी म में पिलाने शा 5 आाहृ्द कर दिये गये और रूस के ईशिदर्ल में पक सुनन युग का पादुसव हुवा । डस्‍्सडय मे तत्काल किसानों के च्थि सुक्रठ दिखे । मे अपने का नमन स किया था। उस ने छात्रा को बड़ी दी था । फितु यद स्पाघीनता अफसरों को न भाई थी इन की दाप्स्पय के रक ला पर दृष्टि लगी। इस करण उसको पते स्कूल शीघ्र दी बन्द करने पड़े । शूरा तथा क्सानों में भूमि में भी चहुत से भकनड़े उठे ऋ | इन कपड़ों में टाद्सटाय सदय किसाना को और पा कला था इस कारण अधिकांश सरदार ठार्स्टाय से जलने लगे । किन्तु साय कब किसी की न.राजी नी परला करता था | बह सदव थधा शक्ति के पथ का समन करना रहा | सन्‌ १८१४ ई० मे 5४ चपे की अवस्था में ने सो बेड 5108 से विवाह कर टिया | इसके चाद 2 साय के कुछ दिन बड़े आनन्द से कटे । सन १८ ४-८ ने शुद्ध तथा शान्ति एव 8 | सााक उपन्यास लिखा । सन १८9६ में धान करेनोना ते हू 31 1.0१ नामक दूसरा उपन्यास लिखा इस फ में था एस डाय के रखना -करशल की सार में घम गाना सरपस्ती काये में करो 3 परी रचा ही ना रस. दा मिलती थी | उस की स्त्री दी एस में मेज के एप ... दिनानों को इतसी सौ भूमि नहीं दी राती थी जिम से वे सर पेरे भोजन पर व. सके तय अडि वक्तो के लिय कुछ बना सर्कू




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now