तरुण गार्ड भाग-2 | Tarun Garda [ Part - ii ]

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Tarun Garda [ Part - ii ] by ओकारनाथ पचालर - Okarnath Pachalar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यह सोच रही थी कि किसी उद्योगपति की बेटी अपन जूते उतारकर उनमें से धूल झाडेगी या नही या ज्म्बे मोजे पहने हुए अपने पैरो के तलबे पोछेगी या नहीं। आख़िर उसने यह सब क्या और पैरो को आराम देने के लिए भोज पहने बैठी रही। यह बिलकुल ठीक था-लग रहा था कि जमन अफसर ऐसा ही समझ रहे ह। यह्‌ यह जानने कं लिए बडी उल्सुर थी वि वास्नोदोन से वितकुल समीप और रोस्तोव क्षेत्र के उत्तरी भाग से लगे लगे जो मोर्चा चल रहा था, वहा वास्तव में काफी डिवीजन थे या नहीं। उसके घर में जो जमन अफ्सर रह रहे थे उनसे पता चला था वि सेस्ताव क्षेत दा एक भाग अभी तक सोवियत अधिकार में था। इस समय कनल का व्यावहारिक बातों की अपेक्षा अपने मनोरजन की अधिव' चिन्ता थी। फिर भी यह्‌ कहे जा रही थी कि थदि उस स्थान का मोर्चा टूट गया तौ वहं एक वार फिर वालूरोविकयो की गुलाम वनं जायेगी । कनल कौ यह बुरा लमा। भरन्तत॒ जमन शक्ति मे उसमे विश्वास की इतनी कमी देखकर वह जैसे वौखला गया- 'एशवंशाएा। 7100 10911 श्रोर उसने उसबी उत्सुकता का समाधान कर दिया। जिस समय वे इस प्रकार बातो में उलझे थे, उसी समय उह पैरा वी कुछ चिट पुट श्राह सुनाई दौ । ये श्राह कस्जाक गाव की दिल्ला से आती हुई बराबर निकट आती जा रही थी। पहले जब उहाने यह पदचाप कुछ दूर से सुनी तो उधर कोई ध्यान न दिया किन्तु उसकी गमक बराबर बढती ही गयी। अब ऐसा लग्र रहा था मानों ये आवाजे लोगो की लम्बी कतार से सुनाई पड रही है। श्ीक्ष ही ये आवाजें सारे पास *লানর ই। 2” १६




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