जन्तु-जगत के जौहर | Jantu Jagat Ke Johar

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Jantu Jagat Ke Johar by नारायण प्रसाद अरोड़ा - Narayan Prasad Arora

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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বানিষ্ট अनेक रूप ] १५ से लौट भी गये। इसके उदाहरण समुद्री-रोर और होल है । दोनों माँसाहारी' स्तनपायी हैं | समुद्री-शेर साँसाहारी भेड़िये ओर आलू ले बहुत छुछ मिलता-जुलता बना. हुआ होता है। आचीन अत्थि-पंजरों के देखने से पत्ता चलता हे कि छल भी एके बूहत्‌ साँसाहारी 'लाब को सन्वान है, जो अपने पूथेज्ञों से बिल- জুল तद्य भरिल्लती । या तों भोजन की खोज सें, या किनारे के बड़े शत्रुओं से बचने के अभिप्राय से होल के पूवज पाली में इसलिये लौट गये कि उन्हें चहाँ बह स्वतंत्रता प्राप्यो जो उन्हें घरती चर नहों प्िज्ञती थी ! उनका उद्देश्य चाहे जो कुछ रहा हो, वे इस बात का एक दुखद उदाहरण हैं कि थे एक आफ़त से निकल. कर दूसरी आकफ़त में फेल गई । सलुष्य अपने अख-शल्लों ओर गोजी चारू से झिसी समय की इस बलवान जाति का लामो- (निशान मिटाये दे रहा है! केबल उनका थोड़ा-सा अयोग्य अब- शेष अंश बच रहा है । नानव की रल मोररकार छर वायुयान आदि चनेक्‌ सशोनों ते जातके की चाल से साधा उपस्थित छर दी है । केवल थोड़े से ऐसे कीड़े- सगोड़े हैं जिनके सम्बन्ध सें यह विश्वास किया ज्ञाता है कि उनकी चाल हवाई-जहाज़ के बराषर है, किन्तु बाज रर गरुड की तरह विभिन्न पक्ती हैं जो १७० और १८० मील ग्रति লতা के हिसाब से उड़ सकतें है । धरती पर छोई ऐसा जानवर नहों है जो चीते या शिक्वारी चसेंदुए को चाल को बराबरी कर खश! उनी चाल ६० मील अति घन्दा होती हे । धरती पर की सारी तेज़ चाल केबल थोड़े ही फ़ासलों तक भारी रह सकतो कोई आदमी तेजो से ३० फोत्न प्रति घष्टा से अविफ नहीं दोइह सदा है और न ७० मोल




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