लहसुन बादशाह | Lahasun Baadashaah
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.6 MB
कुल पष्ठ :
129
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about स्वामी सत्यदेव जी परिव्राजक - Swami Satyadev Jee Parivrajak
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)थ लहसुन बादशाह १४० वर्ष की मैंने श्रत्यंत भ्राश्चयें के लहजे में कहा श्रौर मेरे बोलने में भ्रविश्वास की मात्रा भी थी । लहसुन बादशाह खिलखिला कर हँस पड़े श्रौर बोले-- मेरी श्रायु प्रायः लोगों को हैरानी में डालती है क्या करूँ मुझे सत्य कहना ही पड़ता है इसी के कारणा मेरा नाम लहसुन वादशाह पड़ा है। मैंने लहसुन की कृपा से ही यहश्नायू पाई है उसी ने मु यह तंदुरुस्ती दी है श्रौर उसी के द्वारा मैंनेदो वार कायाकत्प किया है । कायाकल्प ? काया-? इस शब्द ने मुभ में मानों विजली भर दी । क्या लहसुन कायाकल्प भी कर सकता है ? यह प्रश्न मेरे मानसिक क्षेत्र में दौड़ लगाने लगा श्र मैंने वड़े श्रादर से उस श्रजीव मनुष्य को नमस्कार कर कहा-- ्राप तो सचमुच प्राचीन काल के ऋषि मालूम होते हैं। जेसे वे श्रपना कायाकल्प कर दीघंजीवी होते थे ठीक उसी प्रकार श्राप भी इस भौतिक. शरीर को अ्रपने वश में कर इसके स्वामी हो चुके हैं ॥ मैं समभता हूं कि श्रापको ्रपने पास कुछ समय तक ठहरा कर मु प्रापके सनुभवों का यथेष्ट लाभ लेना चाहिए । लहसुन वादशाह मेरी बात सुनकर उठ बंठे श्रौर हंसकर कहने लगे--श््रापने मेरे मन की बात कही। मैं भी सोचता था क्रि एक रत में मैं श्रापको क्या क्या बतला सकगा । बस श्रव ठीक हो गया । मैं भी श्रापको अपनी सारी राम कहानी सुनाकर ही यहाँ से हदूँगा । झ्राइए हम दोनों टहलने चलें रास्ते में मैं श्रापको बातें भी सुनात चलूँगा ।
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