ऋषभदेव एक परिशीलन | Rishabhadev Ek Prishilan

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Rishabhadev Ek Prishilan  by देवेन्द्र मुनि शास्त्री - Devendra Muni Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १५ ) कार्य और साहित्य-साधना से मैं अत्यधिक प्रभावित हुई। मैंने गुरुदेव से निवेदन किया कि मुझें भी कुछ कार्य दीजिए ताकि मैं आपकी देखरेख में कुछ कार्य कर सके । मेरी नम्न प्रार्थना को सन्‍्मान देकर मुझ बाला को प्रोत्साहन देने के लिए ऋषभदेव का प्रथम संस्करण समाप्त हो चुका था, अतः द्वितीय संस्करण तैयार करने के लिए आपश्री ने कहा। मैंने गुरुदेव श्री के आदेश-निदशानूसार उसे तैयार किया । इसमे मेरा अपना कुष भी नही है । गुरुदेवश्नरी के ही भाव-भाषा को एकरूपता देने का प्रयास किया । इसका सम्पादन जो केवल नाममात्र काथा, किन्तु उसे करते समय मुक्ष अचिन्त्य आनन्द की अनुभूति हुई । मक्षे आशा ही नहीं अपितु दढ विदवास है कि इसी प्रकार आनन्द की अनुभूति प्रबुद्ध पाठकों कोभी होगी । प्रस्तुत कायं को करते तमय सदुगुरुवयं राजस्थानकेसरी अध्यात्म- योगी उपाध्याय परम श्रद्धेय श्री पुष्कर मुनिजी महाराज तथा सदुगुरुनी श्री परमादरणीया महासती केसरदेवीजी जौर परम विदुषी सदुगुरनी श्री कौशल्या देवी जी का हार्दिक आशीर्वाद मुझे मिला, जिसे मैं अपना परम सौभाग्य समझती हूँ । प्रस्तुत ग्रन्थ रत्न को विज्ञगण अपनायेंगे और अपने जीवन को पवित्र बनायेंगे इसी मंगल आशा के साथ यह ग्रन्थ (त्वदीयं वस्तुं गोविन्दं तुभ्यमेव समर्पये” की उक्ति के अनुसार गुरुदेव श्री को ही समपित करती हूँ । जैन स्थानक, हैदराबाद -- जेन साध्वी विजयाभी दिनांक १८ सितम्बर, १६७७




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