बापू की प्रेम प्रसादी खंड 2 | Bapu Ki Prem Prasadi Khand 2
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
492
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about घनश्याम दास बिड़ला - Ghanshyam Das Vidala
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तेरह
और जीवन प्रणालिया के सभी लोग गाधीजी से जाकर मिले) प्रसामता के साथ
हमने उनक नंतृत्व को स्वीकार क्या और उनके दिखाये हुए कार्यो मे अपना
अपना हिस्सा जदा करने के लिए प्रवत्त हुए 1
उस समय उनके निकट सपर म आये हुए उनके गिने चुने आत्मीय जनो मे
श्री घनश्यामदासजी बिडला का स्थान अनोखा नै ।
यह ता सभी जानते हैं कि घनश्यामदासजी देश के रने गिने धनिका में से एक
है। उनका मुख्य क्षेत्र तो औद्यागिक ही रहा है। जाग यह भी जानते हैं कि जहोने
खूब कमाया है और अनेक सत्कार्या म मुब्तहस्त से खूब यच भी क्या है। गाघीजी
বা জন भी धन वी जरूरत महसूस हुई उहोने बिना सकोच घनश्यामदासणी के
सामने वह रखी और घनश्यामदासजी ने विना विलब के उसको पूर्ति की है ।
गाधीजी की अनेक शिक्षाआ म एक महत्व वी शिक्षा थी कि 'धनिबी को
अपने-आपका जपनी सपत्ति दे घनी नहीं मानना चाहिए वल्कि टूस्टी वनवर
समाज वी भलाई कै लिए उसका उपयोग करना चाहिए । ` यह समाज की ही
सपन्ति मेरे पास है, मैं उसका धरोहर या विश्वस्त हु” ऐसा समझकर ही उसका
विनियोग करना चाहिए। घनश्यामदासजी को यह् शिक्षा तत्वत मायनहोत
हुए भी उहोने वह् अच्छी तरह से हृदयगम की है। टेशम अनक जगह पर
प्िडला वे नाम से जो शिक्षण सस्थाएं घमशालाए अस्पताव थादि चल रहे हैं वे
इसकी गवाही दंते हैं। उनकी अपनी सस्थाआ के बचावा ऐसी अनक समस्याएं देश
मे हैं जो प्रघधानतया विडला के दान स॒चल रही हैं! गाधीजी की वरीब करीब
सभी सस्थाएं धनश्यामदासजी के धन स लाभा वत हुई है! स्व० जमनालालजी
बजाज बी छीडकर शायद ही दूसरा बाई धत्रिक होगा जिसने घनश्यामदासजी
के जितना गाधी-बाय का आर्थिक बोझ उठाया हा।
एक प्रसिद्ध विस्सा है
ग्राधीजी दिल्ली आये हुए थे। उही दिता गरुस्देव रवीद्धनाथ भी अपनी
विश्वभारती के लिए धन सग्रह करन हतु दिल्ली पहुचे । वे जगह जगह अपन
नाटय और नत्य वा वायक्ष्म रखते थ और वाद मे लोगा स घन के लिए प्राथना
बरते थे। गाधीजी का यह सुनकर बडादु य हुआ। इतना वडा पुरुष बुटाप में
घन इकट्ठा बरने के लिए सो भी केवल साठ हार रुपया बे लिए इस प्रकार अपने
नाटय और नृत्य का प्रत्शन करता फिर यह ग्राधाजी को जसह्य हुआ। उह
ভুত घनश्यामदासजी दा ही स्मरण हुआ। महादवभाई से उह कहलवा लिया,
“आप अपन घनी मित्रो का लिखें और छह जने दस-दस हजार की रकम गुरुतय
वो भेजकर हिंदुस्तान व इमः एम स वचा लें । !
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