प्रवचनसार परमागम | Pravachan Paramagam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
252
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)न र
त सिरि
पोहिका
कवित्त ।
या प्रकार गुरुपरमपरातें, मह दुतीय सिद्धान्त प्रेमान |
शुद्ध सुनयके उपदेशक इत, शाख्तर -विराजत हैं परधान ॥
समयसार पंचास्तिकाय श्री, प्रवचनसार आदि सुप्रहान ।
कुन्दकुन्दगुरु मूल बखान, रीका अमृतचन्द्रकृत जान् ॥ ५६ ॥
कवि प्रार्थना ।
तामें प्रवचनसारकी, बाचि वचनिका মন্ত্র |
उन्दरूप रचना रचों, उर॑घरि गुरुपदकजु ॥ ५७ ॥
कृ परमागम अगम यह, कह मम मति भतिदीन ।
शशि सपरशके हेतु जिमि, शिशु कर ऊचौ कीन ॥ ५८ ॥ |
4
तिमि मम निरख सुधीरता, हँसि कहिएँ परवीन ।
काक चहत पिकं-मघुरःधुनि, मूक चहत कवि कौन ॥ ५९ ॥
क चौपाई 1
यह परमागम अगम वताई । मो मति अस्व स्चत कविताई ।
सो क्ल हंसि किर मति धीराः। शिरिष सुमन करि वेधत हीरा 1 ६०।
दोहा ।
নাত मरार चदे; जथा, मन्दिर भेह - उव ।
बालबुद्धि भवि वुन्द तिमि, करन चहत कविताव ॥ ६१ ॥
पूरर सुकवि सहायते, जिनशासनकी छाॉहिं ।
हूँ यह साहस कीन हे, सुमरि सुगुरु मानमाहि ॥ ६२ ॥
६
जक
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