अर्ध कथानक | Ardha Kathanak

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Ardha Kathanak by नाथूराम प्रेमी - Nathuram Premi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about नाथूराम प्रेमी - Nathuram Premi

Add Infomation AboutNathuram Premi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
१७ सेवामे जा धुसे । आदमी चलते पुरजे थे, किसी तरह बनारसके कंरोडी बन गए. खओौर दरवार छोड दिया 1 बदायूनीके अनुसार आप एक वेदयापर फिदा ये| आगरेसे रवाना होनेके पहले आपने उसे काफी रम्म पिछाई और एक सरपरस्त भी सुकरर कर दिया । जत्र वेश्याओके दारोगाने बादशाह सलामतसे इस बातकी शिकायत की, तो गोसाल बवनारससे पकड मगाए गए । इसके बाद उनपर क्या गुजरी इसका पता नहीं । पर बनारसी हथकंडे दिखलछाकर निकल भागे दोगे, इसमे सन्देह नरी | एेसी दी मजेदार बातोसे बदायूनीकी तवारीख भरी पडी है जो उनके आत्मचरिंतके अंग हैं, इतिहाससे उनका सम्बन्ध नहीं । (_पर बनारसीदासका आत्मचरित उपयुक्त आत्मचरितोसे निराला है । उसमें न तो बाणमदका सूक्ष्म चित्रण है न बिर्दणकी खुशामद । शायद फारसी उन्होंने पढ़ी नहीं थी, इसलिए, बाबर इत्यादिकी उनके आत्मचरिमें वर्णित बादशाही आन बान शानका उसमें पता नहीं चलता । बनारसीदास एक अध्यातमी और व्यापारी थे। इन दोनोका क्या सजोग, पर खाली अध्यातमसें तो रोटी चलनेकी नहीं थी; व्यापार करना जरूरी था, पर उनके आत्मचरितसे पता चलता है कि वे कच्चे व्यापारी थे । समय समय पर उनकी व्यापारिक बुद्धि ऊपर उठनेकी कोरिदा करती थी; पर उनके अतरमानसमे अध्यातमकी बहती धारा उसे दता देती थी । पर वे थे आदमी जीवटके, और जीवनकी कठिनाइयोसे वे हँसकर मिडनेको सदा तयार रहते थे । अगर उनके ऐसा कोई दूसरा ज्ञानी उस युगमे अपना आत्मचरित छिखता तो वह आत्मज्ञान और हिदायतोसे इतना बोझिल हो उठता कि छोग उसकी पूजा करते, पढ़ते नदी। एक सच्ची आत्म- केथाकी विशेषता है आत्म ख्यापन; आप गोपन नही । 'बनारसीदासने अपनी कमजोरियों उघेड कर सामने रख दी है और उनपर खुद हैँसे हैं और दूसरोको हसाया है । अंघ विभ्वासोकी) जिनके वे खुद शिकार हुए थे, उन्होने बडी ही खूबीसे हँसी उडाइ हे । १७ वी सदीके व्यापारकी चलन केसी थी, लेन देन केसे होता था; कारवा चलनेमें किन किन कठिनाइयोका सामना करना पडता था; इन सब बातोपर अर्ध॑ कथानकसे जितना प्रकाश पडता हे उतना किषी दुसरे खोतसे नदी 1 याचके समय अनेक ॒विपत्तियोका सामना करते दए भी बनारसीदास अपने हसो स्वभावको भूल नदी ओर आफतोमे भी उन्दने दास्यकी सामग्री पाई! बनारसीदास अव्यामती अौर व्यापारी दोनो थे,




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now