प्रवचनसार परमागम | Pravachan Paramagam

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Pravachan Paramagam by नरेन्द्र भानावत - Narendra Bhanawatनाथूराम प्रेमी - Nathuram Premi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न र त सिरि पोहिका कवित्त । या प्रकार गुरुपरमपरातें, मह दुतीय सिद्धान्त प्रेमान | शुद्ध सुनयके उपदेशक इत, शाख्तर -विराजत हैं परधान ॥ समयसार पंचास्तिकाय श्री, प्रवचनसार आदि सुप्रहान । कुन्दकुन्दगुरु मूल बखान, रीका अमृतचन्द्रकृत जान्‌ ॥ ५६ ॥ कवि प्रार्थना । तामें प्रवचनसारकी, बाचि वचनिका মন্ত্র | उन्दरूप रचना रचों, उर॑घरि गुरुपदकजु ॥ ५७ ॥ कृ परमागम अगम यह, कह मम मति भतिदीन । शशि सपरशके हेतु जिमि, शिशु कर ऊचौ कीन ॥ ५८ ॥ | 4 तिमि मम निरख सुधीरता, हँसि कहिएँ परवीन । काक चहत पिकं-मघुरःधुनि, मूक चहत कवि कौन ॥ ५९ ॥ क चौपाई 1 यह परमागम अगम वताई । मो मति अस्व स्चत कविताई । सो क्ल हंसि किर मति धीराः। शिरिष सुमन करि वेधत हीरा 1 ६०। दोहा । নাত मरार चदे; जथा, मन्दिर भेह - उव । बालबुद्धि भवि वुन्द तिमि, करन चहत कविताव ॥ ६१ ॥ पूरर सुकवि सहायते, जिनशासनकी छाॉहिं । हूँ यह साहस कीन हे, सुमरि सुगुरु मानमाहि ॥ ६२ ॥ ६ जक




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