भारतीय संस्कृति के उपादान | Bhartiya Sanskriti ke Upadan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
29.27 MB
कुल पष्ठ :
225
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)थृछ भारतीय संस्कृति का उपादान कहा कि वह ब्रिटेन से दासों को ग्रहण न करे क्योंकि वह इतने मूख और शिक्षा के अयोग्य हैं कि उन्हें एथेन्स के घरों में स्थान नहीं दिया जा सकता । विचारवान प्राणि-शाख््रियों का मत है और अधिकांश दतत्ववेत्ता उनसे सहमत हैं कि आनुवेशिकता दा के नियमों के समुचित ज्ञान के बिना प्रजातीय समस्याओं की विवेचना सम्भव नहीं है। साथ ही आधुनिक अनुवंश विद्या 666०5 को मनुष्यों के सम्बन्ध में प्रजाति समस्या की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए अन्यथा प्रजाति शुब्द से उत्पन्न ्रांति जनता पर अपना बुरा और प्रतिकूल प्रभाव डालती रहेगी आनुवंशिकता और प्रजातीय सम्बन्ध के बारे में यह आंति कितनी खतरनाक हो सकती है? नाज़ीब्रान्ड के प्रजातिवाद से जिसके परिणामस्वरूप लाखों यहूदियों और पोल लोगों को मौत के घाट उतारा गया मली-मौति प्रदर्शित हो लुका है। केवल नाज़ी और फासिस्ट ही इसके दोषी नहीं हैं। प्रजातीय पूर्वाग्रहों और प्रजातीय दंगों ने अमरीका को भी प्रभावित किया है। पिछले महदायुद्ध में अस्ट्रेलियनों को जापानी ख्रियों से मिलने की अनुमति नहीं थी और ऑस्ट्रेलिया और अमरिका में अर्स्तप्रनातीय विवाह मान्य नहीं है। शिंतो विवाह-पद्धति के अन्तर्गत विवाह करके ॉस्ट्रेलियन सिपाही सामाजिक विधान के उल्लंघन के दण्ड से बच जाते थे और जबकि जापान और सॉस्ट्रेलिया के बीच प्रजातीय सम्बन्ध अच्छे नहीं थे जापानी ऐसे विवाहों को रखेल-प्रथा की भांति ठुच्छ दृष्टि से देखते थे। पिछले वर्षो में प्रजातीय दंगे अमरिका में काफी बढ़े हैं और उन्होंने इस समस्या की ओर अमरीकनों का ध्यान आकर्षित किया है। इस शोचनीय अवस्था पर अपने विचार प्रकट करते हुए प्रो. एशले मांटेग्यू ने लिखा अमरीका में हमें आशा है कि हम अपने यहाँ से प्रजातिवाद को खत्म कर देंगे किन्ठ केवल आशा ही पर्यास न होगी। हमें कदम उठाना होगा। ऐसा करने के लिए हमें यह जानना चाहिए कि यह रोग क्या है और इसका सर्वोत्तम उपचार क्या है? प्रत्येक विवेकशील स्त्री-पुरुष को प्रजातीय समस्या सम्बन्धी तथ्यों से अवगत होना चाहिए ताकि वह बुद्धिमत्ता योग्यता और मानवता की दृष्टि से उन पर विचार कर सके। जबकि प्रजातीय समस्या के वैज्ञानिक मूल्यांकन की आवश्यकता को अधिंकाधिक स्वीकार किया जा रहा है अनेक जातियों में प्रजातीय पूर्वाग्रह और प्रजातीय अहंकार विकसित हो गया है जिसे वैज्ञानिक ज्ञान द्वारा शमन करने की आवश्यकता है। यह तभी हो सकता है जबकि हम प्रजातीय समस्या से सम्बन्धित तक॑ और कुतक॑ में भेद कर सकें । विभिन्न देशों में प्रजातीय मिश्रण पर पाबन्दी लगा दी गयी है आवासन नियमों ने जनसंख्या की गतिशीलता को सीमित कर दिया है काले अल्पसंख्यक लोगों के प्रति सेना उद्योग और सामाजिक मेल-मिलाप में भी भेद-भाव किया जाता है। यहाँ तक कि इन देशों के सद्दी सोचनेवाले व्यक्ति स्वयं अपने देशों में होनेवाले इन अन्यायों से अपने को लज्जित अनुभव करते है
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