दीपमालिका विधान | Deepamalika Vidhan

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Deepamalika Vidhan by ब्रह्मचारी सीतलप्रसाद जी - Brahmchari Seetalprasad Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१७ ममकाम मिटायो, शील बढ़ायो ॥ तीर्येकर० ॥| सो० ॥ ४ ॥ ^ ` ॐ ह श्री जिनमुखोश्व सरखती देव्ये षं निवेपामीति स्वाहा ॥ पुष्पम्‌ ॥८१ द) पकवान व॒नाया! बहु धरतलाया, सवे विधि भाया, पिषटमहा। पूजू, रथ थुति गा, ग्ीति वदा, शुषा नशा, है खहा ॥ বাং | सो० ॥ ५॥ 3 हीं श्री जिनमुखोझ्व सरखती देन्य नैवेवं नि्ैपापीति साहा ॥ नेवेधम्‌॥ (तवच दवै) करि दीपकन्योते, तमक्षय होत॑, ज्योति उदयो, ঘুমাই আর तुमहो परकाशक, भरमबविनाशक, हम घट भासक ज्ञानवढ़े ॥ ॥ तीर्थकर ० ॥ सो० ॥ ६॥ ॐ हीं शरीजिनयुसोद सरखती देव्ये दीपम्‌ नि्वेपामीति साहा ॥ दीपम्‌ ॥( वप ऋ › शुभगंध दर्शोकर, पावकर्मे घर, धृषमनोहर खेबत हैं | सब पाप जला, पुण्य कमा, दास कहाँ सेवते ॥ तीर्थकर” 1 सो० ॥ ৩) 3* हीं श्री जिनमुखोजव सरस्वती देव्ये धृपम्‌ निर्वपामीति खाहा ॥ भूपम्‌ ॥ (হু भगं अर) बादाम छुद्दारी, लौंग सुपारी; श्रीफठ भारी ल्यावत हैं। मन पांछितदाता, मेंट असाता, तुमगुनमाता गावत हैं ॥ ॥ तीर्थकर० ॥ सो० ॥ ८ ॥




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