दीपमालिका विधान | Deepamalika Vidhan
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
448 KB
कुल पष्ठ :
22
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१७
ममकाम मिटायो, शील बढ़ायो
॥ तीर्येकर० ॥| सो० ॥ ४ ॥ ^
` ॐ ह श्री जिनमुखोश्व सरखती देव्ये
षं निवेपामीति स्वाहा ॥ पुष्पम् ॥८१ द)
पकवान व॒नाया! बहु धरतलाया, सवे विधि भाया, पिषटमहा।
पूजू, रथ थुति गा, ग्ीति वदा, शुषा नशा, है खहा ॥
বাং | सो० ॥ ५॥
3 हीं श्री जिनमुखोझ्व सरखती देन्य
नैवेवं नि्ैपापीति साहा ॥ नेवेधम्॥ (तवच दवै)
करि दीपकन्योते, तमक्षय होत॑, ज्योति उदयो, ঘুমাই আর
तुमहो परकाशक, भरमबविनाशक, हम घट भासक ज्ञानवढ़े ॥
॥ तीर्थकर ० ॥ सो० ॥ ६॥
ॐ हीं शरीजिनयुसोद सरखती देव्ये दीपम्
नि्वेपामीति साहा ॥ दीपम् ॥( वप ऋ ›
शुभगंध दर्शोकर, पावकर्मे घर, धृषमनोहर खेबत हैं | सब
पाप जला, पुण्य कमा, दास कहाँ सेवते ॥ तीर्थकर”
1 सो० ॥ ৩)
3* हीं श्री जिनमुखोजव सरस्वती देव्ये धृपम्
निर्वपामीति खाहा ॥ भूपम् ॥ (হু भगं अर)
बादाम छुद्दारी, लौंग सुपारी; श्रीफठ भारी ल्यावत हैं।
मन पांछितदाता, मेंट असाता, तुमगुनमाता गावत हैं ॥
॥ तीर्थकर० ॥ सो० ॥ ८ ॥
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