श्री भगवद्गीता | Sri Bhagwatgita

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Sri Bhagwatgita  by हरिवंश लाल लूथरा - Harivansh Lal Loothra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ॐ अध्याय १ अः १३ किनो राज्येन गोविन्द कि भोगेजीवितेन वा ३२ येषाम्रये काङ्क्षितं नो राल्यं भोगाः सुखानिच । त इमेऽवस््थितायुद्धभा णांस्त्यक्त्वाधनानिच ३३३ श्राचाय्यौः पितरः एुजास्तयेव च पिवामः । मातुलाः श्वशसाः पौनाः स्यालाः सम्वरिथनस्तथा ३८ ॥| हैं कृष्ण महाराज ‹ य॒द्धमे विजयच्छेभी काक्षा नहीं ओर न राज्य सखकी कि राज्य ओर भोग लें हमको क्या करना और विना स्वजन प्राण रखकेमी च्या करना ह ३२ ॥ जिनके अत्ये राज्य भोग ओर सखकी हम कांक्षा करते हैं वेही लोग युद्धमें प्राण ओर घन त्यागरर खड इहं ३३२ ॥ ये सब आचाय्ये ओर चचेरेभाई पत्र पिता- স্ব সালা अज्ञुर पोन्न साला और सम्बन्धी छाग ছা ৬11




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