कालिदास की महान कृतियाँ | Kalidas Ki Mahan Kratiyan

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Kalidas Ki Mahan Kratiyan by हरिवंश लाल लूथरा - Harivansh Lal Loothra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लिये स्वयं वन में ले गये। वे साये की तरह उसका पीछा करते रहे और धनष-वाण संभाले, सदा उसकी रक्षा के लिए तत्पर रहे। वे उसे हरी और नरम घास खिलाते, उस की पीठ .थपथपाते-औरं मक्खियों और मच्छरों को उड़ाते। दिलीप तभी बैठते जब-नन्दिनी: चैठ जाती और तभी पानी पीते जब वह अपनी प्यास बुझाती। सायंकाल. वे उसके पीछे-पीछे आश्रम को लौट आये। सदक्षिणा ने आगे आकर फिर उस की पजा की। दध दहने के बाद, राजा और रानी काफी देर तक उसकी सेवा-शुश्रूषा में लगे रहे और विश्राम के लिए तभी गए जबवह सो गई। इसके बाद उनका यही दैनिक कार्यक्रम बन गया। जब इस प्रकार इक्कीस दिन व्यतीत हो गए तो गौ नन्दिनी ने राजा की श्रद्धा एवं भक्ति की अधिक कठिन परीक्षा लेने की वात सोची। अगले दिन चरते-चरते वह हिमालय की एक गुफ़ा में घुस गई। वहां एक सिह ने उसे अचानक आ दबोचा। उसकी भयातर चीत्कार ने राजा का ध्यान आकृष्ट किया। उन्होंने सिह को मारने के लिए, तरन्त धनुष हाथ में लिया, किन्तु तरकश से तीर निकालने के लिए ज्यों-ही हाथ बढ़ाया, उनकी अंगलियां उससे चिपक गई । उन्हें छुड़ाने के लिए उनके सभी प्रयास व्यर्थ सिद्ध हुए! उनका चेहरा क्रोध से लाल हो गया। यह देख कर, सिंह मनप्य वाणी में बोला-''राजन, मझे मारने का यत्न मत करो। मैं भगवान शंकर का सेवक हूं। वह देवदार का वृक्ष जो सामने दिखाई देता है भगवान शंकर को पत्र की तरह प्यारा है। देवी पार्वती ने उसे बड़े स्नेह से अपने हाथो से सींचा है। एक बार एक जंगली हाथी ने रगड़ से उसकी छाल उखाड़ दी थी। इससे पार्वती को वहत दः हमा था। तभी से शंकर ने उस वृक्ष की रक्षा के लिए मझे नियक्त कर रखा है। जो भूला-भटका पशु इधर आ निकलता है, उसी को खा कर मैं अपनी भूख मिटाता हूं। सौभाग्य से आज यह गौ यहां ठीक समय पर आ पहुंची है। यह मेरे भोजन के लिए काफी होगी। इसे बचाने का




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