नागानंदमा | Naganandam

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Naganandam by हरिवंश लाल लूथरा - Harivansh Lal Loothra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका १७ उमे, शद्भचूड की अनुपस्थिति में, वध्य चिह्न के रूप में झोढ़ कर वध्य- शिला पर चढ जाता है। उस समय उस 4 मुख से निकले हुए शब्द, * सफ्लीभूता में मलयवत्या पाशिग्रह ॥” दोनो भागों वे बीच सम्बन्ध स्थापित बरने में सहायक हुए हैं ! ३. भगवती गौरी का वरदान भी दोनो भागो को जोडने में कडी का काम ইলা है। प्रयम प्रड्धू में मलयवती को स्वप्न में दिया गया वरदान, नाटक के सुखद भ्रन्त का वारण वन जाता है । दोनों भागों को जोड़ने वाली इन कड़ियो से कदाचित्‌ प्रभावित हो कर सुविख्यात्‌ श्रालोचक 'कीथ! ( शपः ) लिखते हैं;-- 11९7९ 15 8 0९८14९० 15015 ० एवाप एशज़रशा पीर 00150706082 ০৫05৫ दत्व, एष छट 0০061 62০6 15 वि: 0) 00506585564] क्यावस्तु के निर्माण के विपय में ग्रालोचको ने एक प्न्य झ्राक्षप भी किया है। इन के मत में कयानक की प्रगति के लिए नाटक का तीसरा श्रद्ध प्राय झनावध्यक्ञ है। इस झारोप का निराकरण करना कठिन प्रतीत होता है क्योकि इस प्रड्धू में मठज्भ॒ वे नायक का राज्य हस्तगत करने की सूचना मिलने के अ्रतिरिक्त कहानी आग बढती। यह वति दूसरी है कि नास्य चासन के नियमानूसार करुण रस की नितान्त प्रधानता के निराकरण वे लिए हास्य विनोद से परिपूर्ण इस अ्द्धू को उपयुक्त मान लिया जाए। चरित्र चित्रण --हपँ के नाटकों में मानव मन के उस सूक्षम विश्लेषण का परिचय नही मिलता जिसके हमे कालिदास तथा भवभूति की रचनाप्रो में दर्शन होते हैं। यही कारण है वि हर्पे के पात्रों में सजीवता तथा ग्राकर्षण का प्रायः সমান ই) वह अपने पात्रो के साथ तादात्म्य स्थापित करने में भ्रसफ्् रहा है श्रत उस बे पात्र स्वछन्द विहार नही कर पाते । वई स्थानों पर तो वे लेखक के हाथ में बठ पुतलियों बी तरह दोख पड़ते हैं जो उन्हें श्रपनी इच्छा के अनुसार नचाता है 1 वह्‌ उन्हें, जब चाहे, रगमञ्च परनेश्रावा है, जव बाहे,




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