साहित्यालोचन | Sahitya Lochan

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Sahitya Lochan by श्यामसुंदर दास - Shyam Sundar Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( & ). पीछा करने की आवश्यकता ही नहीं है; पर जंहाँ विवेचन का . ढंग दूसरे का हो, विचारों की लला दूसरे की हो, उनके . सजाने का ढंग भी अपना न हो, और केवल भाषा ঈ रूपांतर मात्र हुआ हो, वहाँ मौलिकता की झलंक :का भी मिलना असंभव ই। ` मेरे इस. अ्ंथ में मौलिकता -कितनी है तथा दसरों की प्रतिंछ्ाया कितनी है और कहाँ तक में अपने उद्योग में सफल हुआ हूँ, इसका निश्चय करना विद्धानौ का काम है। मुझे तो केवल इसी वात से खंतोप हो जायगा, यदि यह अंथपथ प्रद्शक का काम देकर अन्य विद्धानौ को इस दिषय के उत्तमोत्तम भ्रन्थ लिखने के लिये उत्साहित कर सके। साहित्यिक आलोचना 'का यह प्रांरंभिक अंथ है । यह केवल उस गहन विषय के लिये प्रस्तावना का काम दे सकसा है । इसके भिन्न भिन्न अध्यायौ पर स्वतंअ সর ভিউ জা सकते हैं । मुझे आशा है कि हिंदी के भ्रमी विद्धान्‌ साहित्य के इस अंग की पुष्टि को ओर अवश्य ध्यान दगे। इस अ्रंथ का अंभी थोड़ा ही, लगभग तृतीयांश ही, लिखा गया था कि मेरे स्नेहभाजन चावू रामचंद्र वस्मां ने अपनी नवोदित साहित्य-रल्न-माला में इसे पहला मनका बना कर 'गूथने का संकल्प प्रकट किया। मैंने उसी समय उनकी इच्छा की पूर्ति का निश्चय कर. लिया; पर में यह नहीं जानता था कि “हाँ”-कर देने ही में मुझे कितनी आपत्तियों और कठिता-




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