तत्व चिंतामणि | Tatv Chintamani

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Tatv Chintamani by हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

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He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शानकी दुलेकला 10) £ सी श्रद्वा पुरुषके सामने भी वास्तविक इश्टिसि (>&= महापुरुषोके दारा यह कहना नदीं बन पडता = 1 कि हमको ज्ञान प्राप्त है! क्योंकि इन शब्दोंसे টি ॐ + ज्ञानमे दोष आता है । वास्तवे पूणे श्रद्राटुके ० लिये तो महापुरुषसे ऐसा प्रश्न ही नहीं बनता कीः নি कि आप ज्ञानी हैं या नहीं ” जहाँ ऐसा प्रश्न किया जाता है वहाँ श्रद्धामें त्रुटि ही समझनी चाहिये और महापुरुषसे इस प्रकारका प्रश्न करनेमें प्रश्नकताकी कुछ हानि ही होती है | यदि महापुरुष यों कह दे कि मैं ज्ञानी नहीं हूँ तो मी श्रद्धा धठ जाती है और यदि वह यह कह दे कि मैं ज्ञानी हूँ तो भी उनके म॑ हसे ऐसे शब्द सुनकर श्रद्धा कम हो जाती है। वास्तवमें तो मैं अज्ञानी ঈ या ज्ञानी इन दोनोंमेंसे कोई-सी बात कहना भी महापुरुषके सिये नहीं बन पड़ता, यदि वह अपनेको अज्ञानी कहे तो मिथ्यापन- का दोष आता है और ज्ञानी कहे तो नानात्वका । इसलिये वह यह भी नहीं कहता कि मैं ब्रह्मको जानता हूँ ओर यह भी




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