जैन धर्म एक परिचय | Jain Dharam Ek Parichya

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Jain Dharam Ek Parichya by विजय मुनि शास्त्री - Vijay Muni Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[य ३ रूप श्रि का दुता “अरिहन्तः कहा जाता है| ज्ञिन भापित घमं श्चौर सस्कृति को जैन घ॒र्म एवं जैय सस्कृति कते है । केन्द्रीय विचार $ जैन घमं श्रौर जैन सस्ति की -्याप्या चहु मिसत ण्व वहुत गम्भीर ই ! वद सब सो उसऊे विशाल साहित्य के अ'ययन से ही जाना जा सफगा। परन्तु सैन परम्परा का वेन्द्रीय विचार है-..“अहिंसा और अनेकान्त ।” अरदिंसा आचार पत है, और अनेफान्त तिचार पक्त, अ्दिसा धर्म है, और अनेसान्‍्त दर्शन! आचार मे अर्हिसा श्रौर विचार मे अनेकान्त, यद जैन धर्म का सर्वोच्च सिद्धान्त है, मुलभूत सिद्धान्त ই। सैन धमे एवः धमं दै, ण्क दशन दै, एङ सच्छति है, जीवन वी एक विशिष्ट पद्धति है और एक अध्यात्म धर्म है। जैन धर्म के अनेक स्वरूप दें। वह पिश्व कस्पना के समान मद्दान और जीवन की भाँति विशाल है,




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