दश लक्षण धर्म | Das Lakshan Dharam

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Das Lakshan Dharam by मगन लाल जैन - Maganlal Jainहरिलाल जैन - Harilal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१३ बे उठे-ऐसी जो. पारमा दी उलट घानर्दमय वीतरागीदश्ा है, वही उत्तमक्षमा है, भौर वही धम्म है । उतमें दुस नहीं कितु भानन्द है । भाज उस उत्तमद्ष्मा धर्म का दिन है । इससे श्री दष्मनत्दि भाषाय मे उत्तमदामा का जो वर्णद किया है उसका प्रवचत हरहा दहै)! साधऊ की सदृचरी उचमक्षमा इस गाया में प्रज्ञानो जोवों को 'जड जन! बहा है । जिह छुतन्पत्वरूप भारमा को सबर नहीं दै प्रौर रागादि को ही प्रात्मा भानत, उं प्रमाप ते 'जड कहते हैं | ऐसे प्रशानिमी थे कठोर वचन ज्ञानीजन स्वभावाश्रित रहकर सहन करते हैं-वह उत्तमक्षमा है। साघपुजन षाहै जंघे प्रतिवुल प्रमो परभी प्रप धीर दीर स्वमाद से च्युत महों होते । भ्रारमस्वमाव को पष्वि जितबा सक्षण है-ऐसे कोप का त्याय करके जिन्होंने साधशदशा प्रगट की है भौर तत्पश्चात्‌ स्थिरता के विशेष पुरुषाष द्वारा धीर होकर ज्ञानस्वस्प में सीन होगये हैं, ऐसे सन्‍्तो को गाह्य में कौन प्रतिकुल्ल है प्रथवा कौत प्रनुवुल है-उससे प्रयोगत नहीं हीीता, कितु भपने पुरुपाय को स्वमाव में उठारकर धो सममविटप परिणमन करते ह उनके उत्तमक्षमा ६ । सोशमग में विचरने वाले साधुप्रो को वह उत्तमक्षमा सर्वप्रथम सहायव है 1 झारमा वो मोद्ामार्गे में जान के लिये कोई पर-पदाय सहा- पक नद्टीं हैं, तु उत्तमतमारूप भपनी लिर्मेल पर्याप ही झपने को सहायक है-ऐसा कहकर भ्राचायदेव में मगलाचरण किया है । नी की कमा मोत्त का भर अज्ञानी की क्षमा समार कौं कारण है। जिने प्रपने चैठस्यस्वरूप के भान द्वारा पुण्प पाप दोनों को ॥ समान साना है प्रोर जिनके शायकदशा प्रगट हद, रहे मुनि षा




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