श्री मोक्षमार्ग प्रकाशक | Shree Mokshmarg Prakashak

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Shree Mokshmarg Prakashak by मगन लाल जैन - Maganlal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१३ शानपिपासुश्रोंको तृष्तिका कारण बनी हुई है श्लौर आपके वचन प्राचीन भाचायाँकी तरह ही प्रमाण माने जाते हैं। स्वाभाविक कोमलता, सदाचारिता, जन्म-जात विद्वत्ताके कारण गृहस्थ होकर भी आचायकल्प' कहलादैका सौभाग्य झापको ही प्राप्त है। धर्म-जिज्ञासुसे लेकर प्रौढ़ विद्वान सभीके लिये यह `मोक्षमामेप्रकाश्चक' ग्रन्थ সি उपयोगी सिद्ध हुआ है । भ्राज तक ३४२०० पुस्तकं हिन्दी, गुजराती. मराठीमें छप चुकी हैं, वही इसकी उपयोगिता सिद्ध करती हैं । पण्डितजीका जन्म संवत्‌ १७९७क लगभग जयपुरके खंडेलवाल जेन परिवार तथा “गोदीका' गोत्रमें हुआ । जोगीदास आपके पिता थे और माताका नाम रम्माबाई था। बचपनमें ही इनकी व्युत्पन्नमतिको देखकर इन्हें खूब पढ़ाकर योग्यतम पुत्र॒बनानेका निशुचय कर, ४-५ वर्षकी अवस्थामें इन्हें पढ़ाने बेठा दिया गया। वाराणसीसे एक विशेषविद्वान इनको पढ़ानेके लिये बुलाया गया । पं० टोडरमलजीको १०-१२ वर्षमें ही व्याकरण, न्याय एवं गणित-जेसे कठिन विषयोंमें गम्भीर ज्ञान प्राप्त हो गया । [ एक जनश्रुति श्री टोडरमलजीके जीवनके बरेमे सुनी जाती हैकि- एक लेन विद्वानने निमित्तज्ञान द्वारा जाना कि यह बालक शअ्रवश्य भ्रपने जीवनमें धर्म - धुरंधर वीरपुरुष होगा..., पश्चात्‌ उन्होंने जयपुरके दीवान रतनचन्दजीसे निवेदन किया कि यदि इस बालकको पढ़ानेके लिये मुझे समर्पित कर दें तो भ्रल्प समयमें ही सर्वोत्तम विद्वान बन जायगा । तब दीवान सा० ने बड़े हषके साथ, गजे बाजेके साथ बालकके माता पिताके पास जाकर उसे पढ़ानेका सुझाव दिया, जिसे माता-पिताने सहर्ष स्वी- कृत कर लिया । बालक थोड़ेसे समय ही पढ़कर आशातीत विलक्षण बुद्धिमान बन गया । | इनकी स्मरणशक्ति विलक्षण थी, गुरु जितना उन्हें पढ़ाते थे उससे अ्रधिक याद करके उन्हें सुना देते थे । इनके शिक्षक उनकी प्रतिभा एवं सातिशय व्युत्पन्नमति- को देखकर दद्ध रह जाते और इनकी सूक्ष्मबुद्धिकी भूरि-भूरि प्रशंसा करते थे । “मोक्षमागं प्रकाशक प्रन्थकी भूमिका स्वयंका परिचय दिया है कि “मैंने इस कालम मनुष्यपर्याय पायी, वहाँ मेरा पूर्व संश्कारसे वा भला होनहार था इसलिये मेरा जैनधर्ममें श्रभ्यास करनेका उद्यम हुआ ।” यह कथन आपकी पूर्वभवकी साधना भौर वतेमान असाधारण योग्यताको सूचित करता है। श्राप जन्मजवाहर तो थे ही, भपूर्व पुरुषाथके बल द्वारा ग्राप महत्वपूर्णा प्रात्मप्रज्ञके धनी बन गये। भ्रतएव थोड़े ही




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