भूधर जैनशतक | Bhudhar Jainshatak

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Bhudhar Jainshatak by भूधरदास जी - bhudhardas ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूधरजेनशतक & (भौपित) भोभावारी [प्रिवष्ठ)पाराअंग (चढ़) शरीर (भष्न)द्रहोनां হু टनां (लञाजत) लजञावमान होना (अनङ्ग)ोकामदेव (दोप]दिवला (भा नु) सुध [मास] चसका्रहमचारो, ्रह्मका विचार करने वाल भ्र्थात्‌ भ,लवान्‌ [उग्ररेन) राजलजीकै पिताकानाम है कुमारी) एदी (ला दोनाघ) जादीं इनन क सामी भ्र्थात्‌ नैमनाथजी ,महाराज [कादो) कौचट़ (रास)मू ह [भीम) भयानक ।आनन ध्रानन्रसहाय) भौर मे ' सहाय(अहो)संवोधनाथ था बह हर मै बाध्रद्सुत बलु निरख करयह शब्द बीलतपे ह ( तक ) तककर ( रास ) समूह ( तास) तास दुःख (क्षपा) दयालुता (कन्द) गांढ-बड़ ( दास ) सवग ( खलास ) छुड़ावो (फर्षि)कोटया सरलार्थ टोका भ्रापवा शोभा मान प्रिय अंग देख कर दुःख दूर होजाता € भौर शोभा कारो शरोरको देख कर कामदेव लजायमान होजाताहनपे दि वला सुय के प्रकाशतें बालअवस्थाये ब्रक्मचारी भ्र्थात्‌ नेमनाथ खामी ने विवाहनहींकरायाराजाउग्रपेनकी पत्नी कौनराजलज्ञो कोभी जाटी नाथ तैंने.भवरूप कोचड़ दुखराससे वाहरनिक्षाशा ससार रुप भयानक वने मोखानीं मैरात्रौरकोसदहायकनहींहै भहोनेमनाघलामो दुःख कारण तुमेतक्षकर श्रायाह .मो क्षपाकन्द भाने जैसे जीवो कोवन्धसे छुड़ाया है ऐ्रेड्ो सुकपेवग को संसार रूप कांटेसेहुटावो সিডি पा्लनाघ सामो की स्ति




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