उमास्वामी - श्रावकाचार - परीक्षा | Umaswami - Shravakachar - Pariksha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
44
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
जैनोलॉजी में शोध करने के लिए आदर्श रूप से समर्पित एक महान व्यक्ति पं. जुगलकिशोर जैन मुख्तार “युगवीर” का जन्म सरसावा, जिला सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। पंडित जुगल किशोर जैन मुख्तार जी के पिता का नाम श्री नाथूमल जैन “चौधरी” और माता का नाम श्रीमती भुई देवी जैन था। पं जुगल किशोर जैन मुख्तार जी की दादी का नाम रामीबाई जी जैन व दादा का नाम सुंदरलाल जी जैन था ।
इनकी दो पुत्रिया थी । जिनका नाम सन्मति जैन और विद्यावती जैन था।
पंडित जुगलकिशोर जैन “मुख्तार” जी जैन(अग्रवाल) परिवार में पैदा हुए थे। इनका जन्म मंगसीर शुक्ला 11, संवत 1934 (16 दिसम्बर 1877) में हुआ था।
इनको प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फारस
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१४ प्रकीरक-पुस्तकमाला
हृदयका भी सच्चा फोट आपने प्रगट कर दिखाया है | अपकी यह
परीक्षा तथा पूवे-लिखित अन्थपरीक्षाएँ बड़ी कामकी चीजे होंगी ।”?
इस प्रकार यह 'अ्रन्थपरीक्षा' लेखमाला और उसके प्रभावा-
दिकका संक्षिप्त इतिहास है। इस लेखमालाने जनताकों सत्यका
जो विवेक कराया हे, जाली सिक्कों को परखनेके लिय परीक्षा
अर जाँचकी जो दृष्टि तथा कसीटी प्रदान की है, परीक्षा-प्रधा-
नता ओर सत्य-वादिताको अपनानकी जो शिक्षा दी है, बड़े
आचायोके नामस न ठगाये जाकर वास्तविकताकी मालूम करने
की जो प्रेरणा की है, अन्धानुसरण कर अइहिनमें प्रवृत्त हानेसे
रोकनेकी जो चेष्टा की है, प्राचीन ऋषि-महर्षियोंकी निर्मेल कीर्ति
को मलिन न हाने देकर उसकी सरक्षाका जो प्रयत्न किया है,
अर शारत्र-मूढ़ता अथवा अन्धश्रद्धांक वातावरणको हटाकर विचारः
म्वातंत्र्य एवं सनिर्णीतके ग्रहणका जा प्रोक्तेजन दिया हैं, वह सब
इस लेखमालाक लेखोंका पढ़नेस हैं| सम्बन्ध रखता है. और उससे
लेखमालाका उद्देश्य भी स्पष्ट हो जाता है।
अब में इतना और भी प्रकट कर देना चाहता हू कि इस
भ्न्थपरीक्षाके कायमें मेरी प्रवृत्ति केसे हुई ? मेरे हृदयमें ग्रहस्थ
धमपर 'गृहि-धर्मानुशस ना नामसे एक सर्वाज्पर्ण ग्रन्थ
लिखनेका विचार उत्पन्न हुआ. जो ग्रृहस्थ-धरम-सम्बन्धी अप*
टु-्डेट सब बातोंका उत्तर दे सफे ओर जिसकी मोजूदगीमें
बहतस श्रावक्राचारादि ग्रस्थीस विपयके अनुसन्धान आदि
की जरूरत न रहे । इसके लिय आचार-विषयक सभी
प्राचीन प्रन्थोंको देखलन की जरूरत पड़ी, जिससे कोई बात
अन्यथा अथवा अम्मक विरुद्ध न लिखी जा सके। ग्रन्थ-सूचियों
में उमास्वासि-श्रवका चार और कुन्दकुन्द-श्रावकाचार जैसे भ्न््थों-
का नाम मिलनेपर सबसे पहले उन्हींका मैंगाकर देखनकी ओर
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