कुलीनता | Kulinata

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Kulinata by गोविन्ददास - govinddas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द कुरछीनता पहल अपने माएडलिकॉको मित्र मानते थे उनकी स्वतंत्रताका कभी अपहरण न होता था। जरासिन्धके पश्चात्‌ उसके पुत्र सहदेवकों ही मगधका सिंहासन मिला था | क्या श्रीमान्‌ शहाबुद्दीनके मारडलिक होकर ऊुतुबुद्दीनसे यह श्राशा करते हैं ? महाराज कान्यकुब्जपति जयचन्दने भी यही आशा की थी | विजयसिंद देव--कान्यकुब्ज और महाकोशालमें अंतर है । वह सैकड़ों व्घीतक भारतवर्षकी राजघानी रह चुका था । मुसलमानोंकों उसे छोड़ देना कठिन था | फिर एक आर अनेक निर्दोघोंका व्यर्थ ही रक्त बहाना है अनेकॉंकों क्रीत-दास बनवाना है मूर्तियोंकों तुड़वाना तौर मन्दिरोंकों भ्रष्ट करवाना है धर्मके नामपर घोर अधमम करना है और दूसरी ओर यह सन्घि है । सुरभी पाठक--कैसा झघर्म परम भट्टारक £ कुछुका रक्त-पात ब्ौर कुछका क्रीत-दास बननेका भय मनुष्यकों उसके सच्चे कतैब्यस च्युत नहीं कर सकता । स्वतंत्रता और सस्सिद्धान्तोंकी रक्षा होते हुए एक चिडँटीके प्राण न जायें तो बड़ी उत्तम बात है पर स्वातंत्रय और सत्सिद्धान्तोंकी रक्षा बिना युद्धके यदि सम्भव नहीं है तो अक्ताहाणियोकी भी कोइ गणना नहीं । भगवान्‌ बुद्धका अहिंसा सिद्धान्त उच्च अत्यन्त उच्च है। पराये राज्यपर आक्रमण कर व्यर्थके रक्त-पातकों मैं वीरता नहीं पर नीचता मानता हूँ पर स्वात॑ंत्रयकी और सच्चे सिद्धान्तोंकी रक्षाके लिए अहिंसाके द्वारा जब तक कोई उपाय संसारमें नहीं निकल आता तब तक हिंसाके मयसें देशकों परतंत्र और देशनिवासियोंको दास नहीं बनाया जा सकता | मूर्तियों ओर मन्दिरोंसे श्रापका क्या अभिप्राय है महाराज ? यह तो




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