कल्याणकारक | Kalyan Karak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(४) স্পস্ট 2-०५ পাপা ~~~ ~ ~ ~ ~ ~~ ~~~ ~~ ~~~ अव्यबोंम बने हुए पचनश्वसनादि मेडखोमे त्रिधातु रहत है } जवयवोमे, उनके घटकोमे; घटकोके परमाणुबोमे त्रिातुबोर्क ब्याप्ति रहती है। इसलिए उनको व्यापी कहा है । व्यापी रहते हुए मी उनके विशिष्ट स्थान व कार्य है । सचेतन, सद्रिय, अतीदिय, अतिमुदेम व वहत पररमायुवोके समूह से इस जीवेत देह का निर्माण होता ह । परमाणु अतिसुषम हरर इ शरीर मे अब्जावधिप्रमाण रे रहते है | एक गणितशाखकारने इनकी संख्या को तीस अब्जप्रमाण मे दिया हैं | शरीर' के सर्व व्यापार इन परमाणुओके कारण से होते ६ । इन्हीं परमाणुओसे शरीर के अनेक अवयब भा बनते है | यकृत. प्लीहा, उन्दुक, ग्रहणी, हृदय, कुष्पुम. सहस्रार नाडीचक्र आई का अंतिम भाग इन परमाणुओंक स्वरूप में है । अनेक परमाणुओसे अवयबोका घटक बनता है | घटकों अवयव, अवथवाम मेड वनते हे । वातमंडदट, खधसङ्क. पचन. रधिराभिस्षरण. उत्मग ये दारीर कं मुख्य मडट दहै । परमाणुओमे रहने वादे त्रिघातु अतिसृक्षम और अवयवांतर्गत, वातमंडलांतर्गत त्रिबातु सृक्ष्म रहते है तो भा उस के स्थृल्व्यापार कै त्रिधातु स्थूलरूप के रहते दै । उदाहरण के लिए पचन व्यापार आमाशय. पक्षाशय. ग्रहणी, यकृनादि अब्यबोम होता हैं | आमाशय, पकाशय बंगरह भे गहनवाला पाचकपित्त स्थूल््थरूप का रहता हैं | वह अपनेको प्रयक्ष देखन में आसकता है | वह बिखर, सर. द्रव, आम्ल आदि गुणोंसे देखने मे आता है | इस फ्ति का अन्न के साथ संयोग होता है। और अन्न के साथ उसकी संयोग-मूच्छेना होकर पचन होता है | पचन के बाद सार-नफेट्रप्रथकब होता है | सारभाग का पक्षाराय में शाषण होता ई | मार-किद्रभिमजन, सारसंशाषण यह कार्य पित्त के कारण से होते हैं। इतर रक्तादि ग्रातमूल घातओंके समान पित्त कफारिकोका भी पोप्रण होना आवश्यक हे | वह पोषण भो पचनब्यापार में होता है. | पित्त का उदौसण होकर क्त्तिस्रांव होता गहता है । खवर हन कं पिके पित्तादिं घातु उन उन घटकोम सृक्ष्मरूप से रहते है । सुक्ष्मब्यापार में वे दीख नहीं सकते । वाहर उनका खाब होनेके बाद वे देखने मे जत है । अनः पित्त पित्तका स्थूलरूप, पित्तेत्पादक घटकश्थितपित्त सृक्मरूप और परमाण्बंतर्गतापेत्त अतिसृक्ष्मखरूप का रहता है, यह धिद्ध हुआ | भुक्तमात्र अन्न के पड्रसोंक पाक से पाचकापच का उदीरण होता हे | आमाशयं मं पाचकपित्त ष किदककफ का उदीरण हकर वह धार धीर्‌ अन्न मे मिरु जात है। ब अन्न का विपाक होता है | अश्नपचन का क्रम करीब करीब चार घंटे से छह घंटे १ हारीराबयवस्तु खल्द्र परमाणुभेदेमाषरिसंश्येया भवति; अतिवहुष्वाव्‌ विश्श्म'बादतीदियत्वास्च || चरकशरीर ७




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