अश्रुपात | Ashrupat

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Ashrupat by श्री दुलारेलाल भार्गव - Shree Dularelal Bhargav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वहादुरशाह की फ़क़ीरी ঙ जीता था, तो वहाँ के काप से उन्हें यह उपहार हाथ लगा था। इससे अ्रीमान पग्रंवधर साहब की दाढ़ी के पाँच वाल हैं, जो श्राज तक हमारे कुटंच में माहात्म्य की दृष्टि से चल आते हैं । अब मरे लिये प्रथ्वी या आकाश मे कहीं ठिकाना नहीं। इनको लंकर श्रव कहाँ जाऊे / आपले वकर इनका कोई पात्र नहीं । लीजिए, इनको रखिए। ये मेरे हृदय ओर সানী की ठंडक हैं. जिनकों आज के दिन की आतंकमयी विपत्ति में अपने से अलग कर रहा हैं 1> आज तीन दिन मे भाजन करन का अवकाश नहीं मिला । यदि घर में कुछ नेयार हो, तो लाओ 1 चिश्ती साहव ने कहा--''हम तल्लोग भी रूत्यु के लमीप ব্লউ ই । खान-पकान का होश नहीं । घर जाता हूँ, जा कुछ हे, भर करता हूँ । अच्छा हो, आप स्वयं घर ही पधारें । जब तक में जीवित हूँ, और मेरे बच्चे बचे हुए हैं, नव तक काई आदमी आपके हाथ नहीं लगा सकता । पहले हम मर जायेंगे, डसके उपरांत कोई ओर समय आ सकेगा।” महाराज ने उत्तर दिया--“आपके इस कथन के लिय्रे में आपका क्ृतज्ञ हूँ। पर इस बूढ़े शरीर की रक्षा के लिये अपने गुरुओं की संतान का हत्याग्ृह में भेजना मुझे कभी सह्य न होगा । दर्शन कर चुका, अमानत सोपि दौ, अब दो झ्ास पतित्र लंगर से ग्वा लूँ , तो हुमाऊँ के मक़बरे में चला जाऊँगा। वहाँ जा भाग्य में लिखा है, पूरा हो जायगा ।” चिश्ती साहब घर गए । पूछने से ज्ञात हुआ कि घर में वेसनी रोटी ओर सिरके की चटनी है । बस, वहीं एक थाल में सजांकर ले आए । महाराज ने वह चने की राटी खाकर तीन वक्त के बाद पानी पिया, और परमात्मा को धन्यवाद दिया। इसके उपरांत हुमाऊँ के मक्रवरे मं जाकर गिरफ्तार हो गए, और रंगून सेज दिए गए। रंगून में भी महाराज # बह छोटा सेदूक उन बालों के सहित दरगाह के तोशाग्वान में रख दिया गया, जो अब भी दग्गाह में हे ।




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