भगवच्चर्चा [भाग 5] | Bhagvatcharcha [Bhag 5]

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Book Image : भगवच्चर्चा [भाग 5] - Bhagvatcharcha [Bhag 5]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९. इश्वर इसका यह अर्थ नहीं कि मगवानसे सांसारिक बस्तु माँगने- बालेंकों बह नहीं मिलता ! मिलती दै, क्योकि प्रत्येकं वस्तु आती उन्हींके मंडारसे है, पर्रतु एसी चीजोंके माँगनेत्राछ' गढती करते हैं | भगवानूपर ही आशा रखनेवाछे विश्वार्सी अर्थार्थी मक्त यदि कोई ऐसे चीज माँगते है तो मगवान्‌ उन्हें दे ढेते हैं और फिर उसी तरह उसकी सम्दाल भी रखते हैं; जैसे माता छोटे शिशुके हट पकड़ लेने- पर उसे चाकू दे देती है, पर कही लय न जाव इस वातकी ओर মনন दशि भी रखनी है 1 भगवानकी दयाक्रे रहम्यक्ी जानने सच्चा निर्भर भक्त तो ऐसी चने माँगता ही नहों। । माँग भी सह सकता । उसकी इशिमे इनका कोई मूल्य ही नहीं रहता | वह ते। भगवानकी इच्छामें ही परम छुखी होता है । कर्मी माँगता है तो बस, यही माँगता है कि 'भगवन्‌ ! मैं सदा तेरे इध्छानुसार बना रहूँ, तेरी इच्छाके विपरीत मेरे चित्तद कभी कोई इत्ति ही न उदय हो +, भगान्‌ मड्ठलमय हैं, उनकी अनिच्छामयी इच्छा मी कल्यागमत्री है, अतख् इस प्रकारकी प्रार्थना करनेताल्य भक्त भी महूलमयी इच्छावाढा अथवा स्या इच्छारहित-नि:स्पृद्द बन जाता है । धद नित्य-निरन्तर मगवान्‌- के चिन्तनमें दी छगा रहता है और उसमें उसको यन्ति मिती ई, जरा-सी देर मी किसी कारणसे मगवानका विस्मरण हो जाता है तो बह उच्त मछलीसे भी अनन्तमुगा अधिक व्याकुल होता है, जो जरू- से अछग करते ही छटपटने ठुगती है | वह संसारमे सर्वत्र, सब और, सब समय अपने प्रभु्की मुनिमन-मोहिनी विक देता ओरं प्र. ल्मे দুল হীন হেলা है । सारा विश्व उसे अपने प्रमुसे सगे दीक्षता है, इससे स्वानाविक ही वह सबकी सेवा करता है, सबको




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