भगवच्चर्चा [भाग 5] | Bhagvatcharcha [Bhag 5]
श्रेणी : हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
406
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about चिम्मनलाल गोस्वामी - Chimmanlal Goswami
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)९. इश्वर
इसका यह अर्थ नहीं कि मगवानसे सांसारिक बस्तु माँगने-
बालेंकों बह नहीं मिलता ! मिलती दै, क्योकि प्रत्येकं वस्तु आती
उन्हींके मंडारसे है, पर्रतु एसी चीजोंके माँगनेत्राछ' गढती करते
हैं | भगवानूपर ही आशा रखनेवाछे विश्वार्सी अर्थार्थी मक्त यदि कोई
ऐसे चीज माँगते है तो मगवान् उन्हें दे ढेते हैं और फिर उसी तरह
उसकी सम्दाल भी रखते हैं; जैसे माता छोटे शिशुके हट पकड़ लेने-
पर उसे चाकू दे देती है, पर कही लय न जाव इस वातकी ओर
মনন दशि भी रखनी है 1 भगवानकी दयाक्रे रहम्यक्ी जानने
सच्चा निर्भर भक्त तो ऐसी चने माँगता ही नहों। । माँग भी सह
सकता । उसकी इशिमे इनका कोई मूल्य ही नहीं रहता | वह ते।
भगवानकी इच्छामें ही परम छुखी होता है । कर्मी माँगता है तो बस,
यही माँगता है कि 'भगवन् ! मैं सदा तेरे इध्छानुसार बना रहूँ, तेरी
इच्छाके विपरीत मेरे चित्तद कभी कोई इत्ति ही न उदय हो +, भगान्
मड्ठलमय हैं, उनकी अनिच्छामयी इच्छा मी कल्यागमत्री है, अतख्
इस प्रकारकी प्रार्थना करनेताल्य भक्त भी महूलमयी इच्छावाढा अथवा
स्या इच्छारहित-नि:स्पृद्द बन जाता है । धद नित्य-निरन्तर मगवान्-
के चिन्तनमें दी छगा रहता है और उसमें उसको यन्ति मिती ई,
जरा-सी देर मी किसी कारणसे मगवानका विस्मरण हो जाता है तो
बह उच्त मछलीसे भी अनन्तमुगा अधिक व्याकुल होता है, जो जरू-
से अछग करते ही छटपटने ठुगती है | वह संसारमे सर्वत्र, सब और,
सब समय अपने प्रभु्की मुनिमन-मोहिनी विक देता ओरं प्र.
ल्मे দুল হীন হেলা है । सारा विश्व उसे अपने प्रमुसे सगे
दीक्षता है, इससे स्वानाविक ही वह सबकी सेवा करता है, सबको
User Reviews
No Reviews | Add Yours...