मनीषी चाणक्य | Manishi Chanakya

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Manishi Chanakya by रामशंकर त्रिपाठी - Ramashankar Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द मनीपी चाणुस्य उससे लिए तैयार कर रहे थे। थे उडकपनमें राजा-मत्री के सेलमें खुद मत्री बनते और विद्वानोंकी तर ऐसी ऐसी बाते कहते जिन्हें छुनरुर वे दूद भी निवांकू दो जाते थे। मे मामूली लड़कोंकी तरद सिफं दीड घूप के पेल्से सम्ुप्ट न होते थे । छोटे छोटे छडकॉको इकट्ठा करके राज-काजका सचाल्म करते थे । कमी कमी एक उपयुच्् लडकेकों राजा बनाकर उसे शुद्ध वियाकी शिक्षा देते थे और सात्म-रक्षा फरना सिखलाते थे। कमी कभी उस राजाकों लिद्दासनपर पिठलाकर शाप स्यय उससे मंत्री होकर सलाद-पराम्श देते थे। सौर फमी पाठशाला चनाकर अपने साधियोकि साध शास्त्रोंकी भाठोचनायें किया फरते मर उन छोगोंको शुदकी चरद उपदेश दिया फरते थे । चाणफ्य ठडकपनमें जेंसे चल थे वैसे ही तेजस्वी भी । उनके इदयमें आत्म-सम्मानका ज्ञान बहुत लडफपनते हो स्फुरित हो चुका था । वे स्वेच्छासे कोई अन्याय फार्य न करते थे । दूचात यदि कोई गर्दित काम कर बैठते तो घदुत लज्ित दोते थे । लेकिन जो कार्य उन्दें उचित प्रतीत दोता था उससे उन्हें निद््त करना गसम्भय था | इसलिए फमी फमी दूखपोंके मना करनेपर भी अपने मनले जो कुछ थच्छा _समकते फर चैठते थे और इस अकार उनके द्वारा अन्याय कार्य हो जाता था 1 ः उनके पिताकी खत्युक्ते चाद उनको माता पुष्को देहसें गे सज चिह देखकर एक दिन रो रही थीं। घाणक्यते मानासे ः उनके रोनेफा फारण पूछा सौर मातानि सय दाल ुघसे चतला भर




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