वेद सिद्धान्त रहस्य | Vaid Sddhant Rahasya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.32 MB
कुल पष्ठ :
408
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)द वेद सिद्धान्त रददस्य
हे आत्मा; दू रुद्र देवकी स्हुति कर, जिस देवका धनुष
चाण सुन्दर है; और जो रुद्र समस्त पापोंफा नाशक है; सो
ही सम्पूर्ण सुखका स्वामी है। उस रुद्रका यनन कर, और
महान् भोश्त आदि पुखके छिये प्रकाशित दे तथा इृवियोंसे
युक्त नमस्कारोंके द्वारा उस माया प्रेरक-वल-माणदाता
रुद्रका ध्यान कर ॥
इस मंत्रका सीनवार पाठ करने से अष्टाध्यायी रुद्वरीका
फल मिलता है। ओम ज्यम्वकमिति मैजस्य वसिप ऋषि-
रनुष्ट्प्ठन्द+ । रद्री देवता पूर्ण आयु-आादिं सुखाये विनियोगः ॥
३० 5यवके यजामहे सुंगन्धि पुष्टिवर्धनम॥।
उवारुकसिववन्धनान्सृत्यो मुंक्षीयसासृतात् ।।
३» शान्तिः ३ ऋगू० ७-५९-१२ ॥
अव्याकत; सखुनात्मा, विराट इन तीनोंकी अधिष्रात देवी
अमस्विका है; सोही च्यम्यका माता है । इस शक्तिका स्वामी
उ्यम्यक है, और अप्नि ( ब्रह्मा) भूठोकवासी, वायु (विष्णु
अन्तरिक्षासी; सूये (मददेश ) चुठोकनिवासी, इन तीन नेता
रनेज ) रूप मदिमाका पिता ( पाठक ) चतुर्थ रुद्र टै, तथा
जगतकी उत्पत्ति, स्वित्ति, रूय, अनुग्रह, तिरोधान, ये पौँच
सुगन्विमय कीर्ति विस्ततत दै, और उपासकॉकी समस्त कामना-
ऑकों पूर्ण करनेवाला, अणिमा-आदि-अैश्वय्मेव््धेक मपिता-
सह बयम्वफफा हम; यज्ञ, उपासना, ज्ञानके दारा. यज़ऩ, करते,
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