भगवान महावीर के जीवन के सुन्दर अंश चिराग | Bhagwan Mahavir Ke Jeevan Ka Sunder Ansh Chirag

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Bhagwan Mahavir Ke Jeevan Ka Sunder Ansh Chirag by धन्यकुमार जैन 'सुधेश '-Dhanyakumar Jain 'Sudhesh'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ विराग कलिकाओं का ल चुम्बन , किरणो ने सम्पुट खोले। हो मारुत से संस्पर्शित , लतिकाओ के दल्ल डाले || पनिहारिन आयी, घट ले- जल भरने को पनघट ম। भुकं भूक जब लगी इव्रोन , क वे रज्जु बोध कर घट मे॥ अबगुण्ठन तब हट जाने-- से स्वण हार यों चमके | ज्यो पावस ऋतु कं श्यामल , मेघो म विद्युत दमके ॥ आग बढ भानु-किरण भी-- उनका मुख पङ्कज दूती । माना सरपुर से आयी, बन किसी देव की दूती॥ वह कुंण्डलपुर के विस्तृत , पथ पर इस भोति विचरती। काभिनियो कमली कलियो , प्रिसलय मेग क्रीडा करती ॥ श्रा पहुँची राज-भवन में , सुनती भ्रमरं का गाना) अतएव माग के श्रम को, उसने न अल्प भी जाना॥ -- दो --




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