शरत साहित्य | Shart Sahitya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
177
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२ शरत्-पत्रावली
कहानी है। छपवाना तो दूर रहा छोगोंको दिखाना मी उचित नहीं है। मेरी
दर्दिक इच्छा है कि वह न छपे और मेरे नामको মিরা न मिलाया जाय ।
अकेला “ बोझ्ा ' ही काफी हो गया है |
म॑ यमुना * के प्रति स्नेहद्दीन नहीं हूँ । यथासाध्य सहायता करूँगा।
पर छोटी कहानियाँ लिखनेकी अब इच्छा नहीं होती, तम छांग दी लिखों ।
निबन््ध लिखूँगा, ओर भेजूंगा। ' चरित्रहान ! कब पूरा दोगा यह नदी
कह सकता | आधा ही हुआ है। पूरा होनेपर समाजपतिको ही भेज दूँगा, यह
कहना ठीक नहीं हागा। तुम अगर कलकत्तेम होते तो ठम्हारे पार भेजता |
इसी बीच तुम समाजपतिको लिस् देना कि * काशीनाथ ” को न छापें। अगर
छाप देंगे तो छज्जासे गड़ जाऊँगा। तुमने दो एक कहानियाँ लिखनेको कहा है
ओर भेजनेकों लिखा है। अगर लिख सका तो किसे दूँगा, तुम्हें या फणीको !
इस बातकों गुप्त रूपसे तुम्दीको लिख रहा हूँ । गिरीन तब
छोय शा; तभी में परिवार्से बाहर चछा आया था। इतने व्ोके
बाद शायद उसे मेरी याद भी नहो। उपीन, त॒म्हें एक बात और कहूँ |
एक दिन उसकी एक पुस्तक खरीदनी चाही थी। नुमने मना करते हुए
कहा था कि सुनने पर उसे दुःख होगा। उसी बातको याद रख कर ही मेने
नहीं खरीदी। साफ साफ एक पुस्तक मोगी मी थी, लेकिन उसने नदीं मेजी ।
बचपनमें उसकी अनेक चेष्टाओंका संशोधन कर दिया था। में लिखता था,
इसी लिये उन लोगोंने भी लिखना शुरू किया । उस मकानमें झायद मेने ही
पहिल उसपर ध्यान दिया। इसके बाद वें छोग सरकंडेसे लिखकर एक
दस्तलिखित मासिकपत्रिका निकालते थे । आज तक उसने एक भी प्रति
मुझे पढ़नेकों नहीं दी। जायद वह सोचता है कि मेरे ऐसा मूख आदमी
उम्की चीजोंको नहीं समझ सकता। जाने दो, उसके लिये दुःख करना
बेकार है| संसारकी गति ही झायद यही है। मेरा स्वास्थ्य आज कल अच्छा
है। पेचिस अच्छी हो गई है । आज कल पढ़ना एक तरहसे बंद किया है !
मेरा असमाप्त * महार्वेता ? (तेलचित्र ) फिर समाप्त होनेकी ओर धीरे
धीरे बढ़ रह्या है । उस बड़े उपन्यासको तुम्हारे लिखनेका इरादा है न, अगर
नहीं है तो बहुत बुरा है। बकालत भी करो और उसे भी न छोड़ो ।
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