श्री जैन सिद्धांत बोल संग्रह भगा - 1 | Shree Jain Sidhant Bol Sangrah Bhag -1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[६ 1 भी विशेष उपथोगी सिद्ध होंगे। बोलों का यह वृहत्‌ सम्रह उनके लिए জীন विश्वक्रोप' का काम देगा । साधारण सकल तथा पाठशालाओं के श्रयापक भी वियायियों के लिए उपयोगी तया प्रामाशिक्त निएय घुननें मे पर्याप्त लाभ उठा सर्ेंगे । उनक लिए यह मर थे एक मार्ग दर्शक श्रीर रक्नो के भण्डार का काम देगा। सावारण जिन्नासुओं फे लिए तो श्सरी उपयोगिता पष्ट टी है । मर-धमेश्याए्‌ हए विपयो की सूची यलो के नम्र देकर श्रा राधनुत्मणिका के अनुसार प्रारम्भ में दे दी गई है । इस से पाठकों की इन्ठित विपय ढ्ँँढने मे सुविधा होगी । चूँकि इस पुस्तक वी शैली मे सरयानुक्म का अनुसरण फिया गया है। इस लिए पाठकों को एक ही स्थान पर सरल एय सूद्रम भाव तथा विचार फे बोलो का सफलन मिलेगा, परन्तु इस दशा में यह होना स्वाभाविक ही था । इस फठिनाई पो इल करने के लिए कठिन बोलों पर पिशेप रूप से सरल ण्य भिस्त व्यास्याएँ ভী गई है । फठिन और हुनोध विषयों को सदल प्य सुवो य करने पै प्रयत्न मे सम्भव है भावों में कहीं पुनमक्ति प्रतीत हो, परन्तु यह तो जान वमक पाठका की मुविधा + लिए हो क्यि। गया है । यशदब्‌ इस लिए लिखे जा रदे हैं कि प्रेमी पाठकों को भेरे परवान के सूल में रही हुई भावना का पता लग जाये और वे जान लें कि जहा इसमे आत्मीतति की रण है यहीं लोकोपकारी अद्तत्ति भी है। प्र के सम्पाध में जो छुछ কষ্ভা गया है बह पाठकों को अपन परिभ्म का आमास करा वर प्रभावित करने के लिए नहीं अपिद -स धार्विफ अनुष्ठान का समुचित आदर बरने के लिए है। यलि ये मेरे इस कार्य से किचिमात्र भो आ यात्मिक स्ृर्ति का अ्ुभव करेंगेतो जोक कल्याण की भायना को इससे भो मुन्दर और आध्यात्मिक सादित्य सिनं सकेगा |




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