दक्षिण भारत के पर्यटन स्थल | Dakshin Bharat Ke Paryatan Sthal
श्रेणी : भारत / India, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.49 MB
कुल पष्ठ :
186
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दक्षिण भारत के पर्यटन स्थल /
पर्श्विर सेकण्ड कलाम मे और आधा एसी में और दोनों के मध्य पन्द्रह-सील़ह
डिब्वो का अम्तराल़ । रात में दस बजे के बाठ लिक बन्द । किसी को कोई परेशानी
हो तो? विचार मथन चल ही रहा था कि आगरा आ गया । सच यह है कि मथुस
कव आया-गया, मुझे पता नहीं चला । तनाव टिमाग में बरकरार था । आगरा
आते-आते हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि सेकेण्ड क्लास में ही यात्रा कर लते
हैं। आधे-इधर-आधे उधर ठीक न होगा । लेकिन गाड़ी के आगरा छोड़ते ही मन
ने पुन. करवट बदली ! एक वार घलकर देख लेना चाहिए . हो सकता है तीन
वर्थ मिल जाएँ। तब काम चल जाएगा
और मै भटनागर से मिलन जाने के लिए उठ गया ।
भटनागर मुझे देखते ही वोला, “अच्छा हुआ आप आ गए। मै तो आपको
खबर भेजने वाला था!”
कण्डक्टर का यह कथन मुझे राहत दे गया।
“फिर कितनी बर्थ दे रहे है आप मुझे
“तीन तो दे ही दूँगा ।”
“चौथी भी यदि दे सके .।”'
“आप सामान उठाकर आ जाएँ . ।”
''आ जाऊँ, न
“'निश्चिन्त होकर आएँ...मैेने कह तो दिया है।
और मैं उसे धन्यवाद दे एस.श्री तक पहुँचने के लिए गाड़ी की घड़घड़ाहट
और डिव्वो के डिचकोले झेलता-खाता तेजी से दौड़ रहा था । लग रहा था कि
कोई बड़ी उपलब्धि हाथ लगी है। डिब्बो मे टोपहर का भोजन करते या आराम
करते यात्री मुझे देख सोचते होगे कि आख़िर इसे हुआ क्या है. -पागलों की भांति
आना-जाना |
जब एस श्री में पहुँचा हाफ रहा था। लेकिन चेहरा खिला हुआ था मानो
सारा कष्ट डिव्वों के बीच दीडते निचुड़कर बह गया था । पत्नी ने पहुँचते ही पूछा,
“मिल गई
“हों, अभी तो तीन का वायदा किया है.. हो सकता है चौथी भी मिल जाए
और मैं सामान समेटने लगा।
वच्चे अपना-अपना सामान लादने लगे! अटैचियाँ मेरे हिस्से थीं। पत्नी के
हिस्से पानी से भरा आठ लीटर का मयूर जग और कंधे पर एक बैग था। लेकिन
जग उसकी परेशानी का कारण बन यया। से एस-फोर में संधि-स्थल को
पार करना जग क साथ कठिन हो गया. मुझ लगा यदि इसके साध यह आगे
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