भारत ज्ञानकोष भाग - 3 | Bharat Gyankosh Part 3
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.05 MB
कुल पष्ठ :
46
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दक्षिण भारतीय मदिर स्थापत्य मुद्राओं और गतियों का अक्सर इस्तेमाल किया गया है चोल प्रतिमाएं अपने लालित्य संवेदमशील प्रतिरूपण और संतुलित तनाव में बेजोड हैं. विजयनगर काल 1336-1565 के दौरान आलंकारिकता ज्यादा विस्तृत हो गई जिससे शरीर की सहज लय में बाघा आ गई और मुद्राएं ज्यादा स्थिर हो गईं प्रतिमाएं छोटी घरेलू मूर्तियों से लेकर आदमकद तक होती थीं जिन्हे मंदिर की शोभायात्रा में ले जाया जाता था. कुछ बौद्ध एवं जैन मूर्तिया भी बनाई गई लेकिन ज्यादातर मूर्तियां अपनी पत्नियों एवं सेवकों सहित हिदू देवताओ विशेषकर भगवान शिव और विष्णु की विभिन्न छवियों का प्रतिनिधित्व करती थीं. उत्कृष्ट मूर्तियों में शैव और वैष्णव संतों आलवारों की कई प्रतिमाएं भी शामिल हैं. हा में डिय मूर्तियों की ढलाई मोम के सांघे की प्रक्रिया से की जाती थी. ढलाई के तमिलनाडु से प्राप्त. बाद मूर्तियों को नककाशी और गढ़ाई द्वारा अंतिम रूप दिया जाता था हा व दक्षिण भारतीय कांस्य मूर्तिया तमिलनाडु मे तंजावुर संग्रहालय और कला । और कला दीर्धा .... दीर्घा तथा चेन्नई भूतपूर्व मद्रास में संगृहीत हैं लेकिन बड़ी सख्या मे उत्कृष्ट मूर्तियां दक्षिण भारत के विभिन्न मंदिरों मे हैं. पी चढद्रा दक्षिण भारतीय मंदिर स्थापत्य द्रविड़ शैली भी कहते हैं आधुनिक तमिलनाडु में सातवी से अठारहवी सदी तक निरपवाद रूप से अधिकतर हिदू मंदिरों में प्रयुक्त जिसकी विशेषता पिरामिडीय या कुटिन शैली का ऊंचा शीर्ष है. कर्नाटक के पूर्व में मैसूर एवं आंध्र प्रदेश राज्यों ... में इसके अलग-अलग स्वरूप पाए जाते हैं. 5 दक्षिण भारतीय मंदिरों में अनिवार्य रूप से वर्गाकार कक्षीय १1 . गर्भगृह उसके ऊपर एक अधिसंरचना- शिखर या कलश तथा इससे सलग्न स्तंभयुक्त मंडप या मंडपम जो आयताकार प्रागण गौ | डे के किनारे खंभों की पंक्तियों वाले कक्षों से घिरे होते हैं मंदिर की 7 तमिलनाडु मे कोलिश्वर मंदिर नवीं .. बाहरी दीवार भित्ति-स्तंभों से बंटी रहती है तथा इसमे मूर्तिया डर बला रखने के लिए आले बने होते है. गर्भगृह के ऊपर की अधिरचना या शीर्ष कुटिन शैली का होता है तथा पिरामिडीय आकार मे क्रमश. पीछे हटती व घटती हुई मंज़िलें होती हैं. प्रत्येक मंजिल लघु वेदिकाओं की पक से रेखाकित होती है जो किनारों पर वर्गाकार तथा मध्य मे आयताकार होती है मीनार के शीर्ष में युबदनुमा शिखर एक अभिषेक पात्र एवं कलश होता है. द्रविड शैली का प्रारंभ गुप्त काल मे देखा जा सकता है. विकसित शैली के प्रारंभिक मौजूदा उदाहरण महाबलीपुरम मे सातवीं सदी के चट्टानों को काटकर बनाया गया मंदिर तथा इसी स्थल पर बना विकसित सरचनात्मक तट मंदिर लगभग 700 ई. है थे
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