सुदर्शन - चरित | Sudarshan - Charit
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
120
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)छुदशनका जन्म | | ११;
পপ সিপিবি
सुदर्शन भाग्यशाली ओर बुद्धिवान:था | झल्ए वह थोड़े ही
दिनि श्राप समुद्रके पाठको प्राप्त हो गया-अच्छा विद्वान्
हो गया । सुद्शनकी पुरोहित-पृत्र कपिलके साथ मित्रता हो
गई । छुदशन उसे जी-नानेसे चाहने छगा | कपिहकों भी एक
पहमर सुदशनको न देखे चेन न पड़ता था। वह सदा उसके साय
रहा करता था। कपिल हृदयका भी बड़ा पविन्न था |
पुदशेनने अव कुमार अवस्थाकों छोड़कर नवानीमें पांव
खखा | रतनोंके आभूषणों ओर फूोंकी माढाओने उसकी
अपूर्व शोभा वढ़ा दी । नेत्नोंने चेचढ़्ता ओर प्रसन्नता धारण की।'
मुख चन्द्रमाकी तरह शोभा देने ढगा। चोड़ा हछाट कान्तिस
दिप उठा 1 - मोतियोके हारोंने गे ओर छातिकी शोभामे और
भी छुन्दरता छादी | अँगूठी, कड़े, पोंची आदि आमभूषणोंसे हाथ
कृताय हुए। रत्नोंकी करपनीसे कमर प्रकाशित हो उठी।झुदशनकी
जाँघे केहेके स्तंभ समान' कोमल ओर सुन्दर थी। उसका सारा
शरीर कान्तिसे दिप रहा था। उप्तके चरण-कमठ नखरूपी. चर
माकी किरणोंसे बड़ी सुन्दरता धारण किये थ। वह सदा बहुमूल्य
ओर सुन्द्र वल्रामूपर्णोते, चन्दन ओर सुगन्धित फ़ूल-माछाओंते
सजा रहता था। इस प्रकार उसे शारीरि सम्पत्ति ओर घन-
वैमवकरा मनवाहा पुव तो प्राप्त था ही पर इसके साथ ही उसे
धार्मिक सम्पत्ति भी, जो वाप्तवमे घुखकी कारण है, प्राप्त थी। वह
बड़ा धर्मात्मा था, वुद्धिवान् था; विचारदीर था, माही था;.
चतुर था, विवेकी था, विनयी था, देव गरशाखकरा सत्रा भक्तं था,
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