सुदर्शन - चरित | Sudarshan - Charit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छुदशनका जन्म | | ११; পপ সিপিবি सुदर्शन भाग्यशाली ओर बुद्धिवान:था | झल्ए वह थोड़े ही दिनि श्राप समुद्रके पाठको प्राप्त हो गया-अच्छा विद्वान्‌ हो गया । सुद्शनकी पुरोहित-पृत्र कपिलके साथ मित्रता हो गई । छुदशन उसे जी-नानेसे चाहने छगा | कपिहकों भी एक पहमर सुदशनको न देखे चेन न पड़ता था। वह सदा उसके साय रहा करता था। कपिल हृदयका भी बड़ा पविन्न था | पुदशेनने अव कुमार अवस्थाकों छोड़कर नवानीमें पांव खखा | रतनोंके आभूषणों ओर फूोंकी माढाओने उसकी अपूर्व शोभा वढ़ा दी । नेत्नोंने चेचढ़्ता ओर प्रसन्नता धारण की।' मुख चन्द्रमाकी तरह शोभा देने ढगा। चोड़ा हछाट कान्तिस दिप उठा 1 - मोतियोके हारोंने गे ओर छातिकी शोभामे और भी छुन्दरता छादी | अँगूठी, कड़े, पोंची आदि आमभूषणोंसे हाथ कृताय हुए। रत्नोंकी करपनीसे कमर प्रकाशित हो उठी।झुदशनकी जाँघे केहेके स्तंभ समान' कोमल ओर सुन्दर थी। उसका सारा शरीर कान्तिसे दिप रहा था। उप्तके चरण-कमठ नखरूपी. चर माकी किरणोंसे बड़ी सुन्दरता धारण किये थ। वह सदा बहुमूल्य ओर सुन्द्र वल्रामूपर्णोते, चन्दन ओर सुगन्धित फ़ूल-माछाओंते सजा रहता था। इस प्रकार उसे शारीरि सम्पत्ति ओर घन- वैमवकरा मनवाहा पुव तो प्राप्त था ही पर इसके साथ ही उसे धार्मिक सम्पत्ति भी, जो वाप्तवमे घुखकी कारण है, प्राप्त थी। वह बड़ा धर्मात्मा था, वुद्धिवान्‌ था; विचारदीर था, माही था;. चतुर था, विवेकी था, विनयी था, देव गरशाखकरा सत्रा भक्तं था,




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