पंच - रत्न | Panch-ratn
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
72
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सम्राट् विम्बसार । [९
नेदभी-प्तीघे २ बताइए |!
अ०-डेढ़ बात है ) छुनिए, पिंतानी जएण्यमें एक শীক-
पद्ठीमें जाफंसे | वहांके भीलरानाकी कन्याने उनका मन मोहलिया।
भीररानाने इ शतेपर विवाह करदिया कि उप्की कन्याका कड़का
युवरान होगा, इप्रीरिए उत्तकषा रुड़का चिलातपुत्र युवराज वना.
दिया गया और मुझे यह दंड भुगतना पड़ा ॥!
नंद०-तो क्या जाप भबर सवप्ममें राजा बनेंगे | आपके पिताने
भीढनीके साथ विवाह किया चही मुझे बताते हैं न जाप ! पर में
जेनी नहीं-पुरोद्तित कन्या हे पुरोहित ) कहकर वह दस्त पड़ी |
अ्रेणिकने कद्दा-मैं भी भव जेनी नहीं है, वोद्घर्मेने मेरा उप-
कार किया | परन्तु में हू सुगवीर | कहो वीराइना बननेकी मनमें
नहीं है क्या! श्रेणिकका यह वावय पूरा नहीं हुआ था कि पुरोहित
महाराम वहां आगए | नंदश्रीने इप्का कुछ उत्तर न दिया !
सौभाग्यसे थोड़े ही दिनोंगे श्रेणिक राममान्य होगए ओर
लोग उन्हें बड़ी प्रतिष्ठाकी नमरसे देखने लगे । पुरोहित महाराभ
रेसे पाहुनेको पाकर बड़े प्रसन्न हुए | श्रेणिको वह अपना
भात्मीय मानने रुगे कहना न होगा, श्रेणि जीर नेदश्रीी
मनचेती होनेमे देर न छगी | उनका विवाह होगया और वह
-भानैदसे रहने रगे । रोगन इपर भाद विवादी बड़ी सरादनाक्षी।
(३)
नेदश्रीके चिबुको उफ़पताति हुए प्रेणिवने कहा-' कदी
पुरोदिवानीजी, यापकी नाति पाति णव कां रदी ¢ `
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