पंच - रत्न | Panch-ratn

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Panch-ratn by कामता प्रसाद जैन - Kamta Prasad Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सम्राट्‌ विम्बसार । [९ नेदभी-प्तीघे २ बताइए |! अ०-डेढ़ बात है ) छुनिए, पिंतानी जएण्यमें एक শীক- पद्ठीमें जाफंसे | वहांके भीलरानाकी कन्याने उनका मन मोहलिया। भीररानाने इ शतेपर विवाह करदिया कि उप्की कन्याका कड़का युवरान होगा, इप्रीरिए उत्तकषा रुड़का चिलातपुत्र युवराज वना. दिया गया और मुझे यह दंड भुगतना पड़ा ॥! नंद०-तो क्या जाप भबर सवप्ममें राजा बनेंगे | आपके पिताने भीढनीके साथ विवाह किया चही मुझे बताते हैं न जाप ! पर में जेनी नहीं-पुरोद्तित कन्या हे पुरोहित ) कहकर वह दस्त पड़ी | अ्रेणिकने कद्दा-मैं भी भव जेनी नहीं है, वोद्घर्मेने मेरा उप- कार किया | परन्तु में हू सुगवीर | कहो वीराइना बननेकी मनमें नहीं है क्या! श्रेणिकका यह वावय पूरा नहीं हुआ था कि पुरोहित महाराम वहां आगए | नंदश्रीने इप्का कुछ उत्तर न दिया ! सौभाग्यसे थोड़े ही दिनोंगे श्रेणिक राममान्य होगए ओर लोग उन्हें बड़ी प्रतिष्ठाकी नमरसे देखने लगे । पुरोहित महाराभ रेसे पाहुनेको पाकर बड़े प्रसन्न हुए | श्रेणिको वह अपना भात्मीय मानने रुगे कहना न होगा, श्रेणि जीर नेदश्रीी मनचेती होनेमे देर न छगी | उनका विवाह होगया और वह -भानैदसे रहने रगे । रोगन इपर भाद विवादी बड़ी सरादनाक्षी। (३) नेदश्रीके चिबुको उफ़पताति हुए प्रेणिवने कहा-' कदी पुरोदिवानीजी, यापकी नाति पाति णव कां रदी ¢ `




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