मअसीरुल उमरा | Masirul Umra

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Masirul Umra by देवीप्रसाद - Deviprasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका ्रत्येक जाति का यह्‌ सवेदा ध्येय रहता है. कि वह अपने को सजोव बनाए रखने तथा उन्नति पथ पर ददता से सनैदा प्रसर होने का प्रयत्न करती रदे । इसका एक प्रधान साघन उसके पूर्व गौरव की स्मृति है, जो सदा संजीवनी शक्ति का संचार करती हुई उसको अपने लक्ष्य की आर बढ़ने के लिये उत्सादित करती रहती है। इस स्मृति की रक्षा उस जाति के साहित्य-भांडार में उसे सुरक्षित रखने दी से हो सकती है, और इसको सुरक्षित न रखना अपने ध्येय को नष्ट करना है। साथ हो जिस साहित्य भांडार में इतिहास तथा जीवनचरित्र रूपी रत सं।चत न किए गए हों, वे कभी पूर्ण नहीं माने जा सकते। हमे अपनी प्रिय जन्मभूमि सास्र साता के प्राचोन इतिदृत्त को बे यतन से सुरक्षित रखना होगा | हम भारतवासियों के लिये यह पूष गौरव की स्मृति अभी तक अत्यधिक आवश्यक है, क्योकि उसके न रहने पर संसार की जाति-अदशिनी में दमे स्यात्‌ कोई स्थान मिलना असभव हो जायमा । कृति ने जगती-तल के एक श्यशा, इसारे इस प्यारे सारत पर ऐसी कृपादृष्टि बना रखी है कि यहाँ सभी प्रकार के जलवायु, नदी, निर्मर, अन्न, फल, फूल, पशु आदि वतेसान हैं. और यहाँ के रहनेवालों को जोबन की किसी आवश्यक वस्तु के लिये पसमुखापेज्षी नहीं दोना पढ़ता। इसी




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