बच्चों की कला और शिक्षा | Baccho Ki Kala Or Shiksha

Baccho Ki Kala Or Shiksha by देवीप्रसाद - Deviprasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मोनोक्रोम चित्र पहले' कीरम-काँटे लडका, उम्र २-७ जव प्रारम्भ मे वालक हाय सें पेंसिल पकडकर गोल-गोल आकार वनाने लगता है। यह विशेष तौर पर स्तायु-करिया ( मस्क्युकर मूवमेण्ट ) होती है। सावन से परिचयः लडकी, उम्र ३-६ वालक देखता है कि जो सावन हाथ में है, उससे क्या-क्या हो सकता है। शस्नायुमो पर कव्जा आना प्रारम्भ” ( मस्व्युदूर कट्रोल ) छूडका, उम्र ३ अव हाथ केवल गोरू-गोल न चहुकर कोणाकार और उल्टा-सीघा भी चलने लूगता है। 'स्मायुजो पर अधिक कब्जा लडका, उम्र ३ पूरा कन्वा ओर कोहनी चलना कम हो जाता है और करूई पर कब्जा आने लगता है 1 अलग-अलग रगो से हाथ इघर-उवर चरने में वालक और मज़ा लेने छुगता है। गोरू-गोल आकारो से खेल लडकी, उम्र ४-६ इस आकारो के खे के वाद इस वालिका ने इस चित्र का नाम दिया घर 1 ঘীন্তা? लडका, उम्र ४ कूची भौर रग से जो कीरम-काँटे' वने, इस चालक ने उसे 'घोड़े' का नाम दिया। सचमुच ही चित्र मे घोडे का आमास आता है। “राम का घनु्ष लरूडका, उम्र ४ ( वर्णन पृष्ठ-सछ्या ६२ पर देखिये ) मनुष्याँ लडका, उम्र ४ पके चाककं ऊपर से नीचे लकीर खीच रहा था ! इसके हाय से एकं पडी सकर पहरी खडी छकीर को काटते हुए खिच गयी । उसके वाद उसने सव खडी कीरो को आदमी वनाने के लिए पडी लकीरो से काट दिया 1 सवे मनुष्य वन गये । - तारो भरी रात लडकी, उम्र ५-३ चित्र बनाने के पहले ही इस वालिका के मन में चित्र की योजना थी। इस अवस्था में स्पष्ट प्रतीक-काल प्रारम्भ हो जाता है। उन्नीस




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