पंच संग्रह | Panch Sagrah

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देवकुमार जैन - Devkumar Jain

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मिश्रीमल जी महाराज - Mishrimal Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५ ७ ) विस्तार से स्पष्टीकरण किया है । यही चार पदाथं अनिवृत्तिकरणममे * भी होते है गौर अनिवृत्तिकरण काल का सख्यातवा भाग नेष रहने पर स्थित्ति का अम्तरकरण होता है । अतरकरण होने पर नीचे भौर ऊपर की स्थिति- इस प्रकार से स्थिति के दो भाग हो जाते है । नीचे की स्थिति को प्रथमस्थिति और ऊपर की स्थिति को द्वितीयस्थिति कहते है । वीच की भूमिका शुद्ध होती है । जिसमे कोई भी दलिक भोगने योग्य नही रहता है । इसी समय प्रथमोपशम सम्यक्त्व उत्पन्न होता है । जिसका काल अतम हूत है । उपशाताद्धा के अत मे अध्यवसायो के अनुसार सम्यक्त्वपुज का उदय होने पर क्षायोपशामिक सम्यवप्व की, मिश्चपुज का उदय होने पर मिश्रगुणस्थान की ओौर मिथ्यास्वपु ज का उदय होने पर भिथ्यात्व- गुणस्थान की प्राप्ति होती है तथा उपश्मसम्यक्त्व काल मे एक समय यावत्‌ छह आवलिका काल शेप रहने पर अशुभ परिणाम होने से कोई सासादनभाव को भी प्राप्त होता है और उसके बाद वहां से गिरकर अवश्य ही मिथ्यात्व को प्राप्त करता है। इस प्रकार से प्रथम सम्यकत्वोत्पाद प्ररूपणा का सागोपाग विवे- चन करने के वाद चारिच्रमोहनी य-उपरदामना प्ररूपणा का कथन प्रारभ किया है) सर्वप्रथम देशविरति, सवं चिरति लाभ ओर स्वामित्वको वतलाने के वाद भविरतसम्यग्हष्टि, देगविरति ओर सर्वविरति का स्वस्प बतलाया है । अनन्तर क्रमग्राप्त अनन्तानुवधि-विसयोजना की तथा जो आचार्यं अनन्तानुवधि की उपक्षमना मानते है, उनके मततानुसार उपशञमना प्रस्पणा की है। तत्परचात्‌ दशंनमोहक्षपण का बिस्तार से वर्णन किया है और अतत मे बतलाया ह कि क्षायिक सम्यक्त्वी कितने भवमे मोक्ष प्राप्त करता है--इसके बाद चरित्रमोहनीय की उपशमना का स्वामित्व




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