व्याख्या प्रज्ञप्ति भगवती सूत्र [भाग-1] | Vyakhya Pragyapti Bhagavati Sutra [Bhag-1]

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Vyakhya Pragyapti Bhagavati Sutra [Bhag-1] by मिश्रीमल जी महाराज - Mishrimal Ji Maharaj

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about मिश्रीमल जी महाराज - Mishrimal Ji Maharaj

Add Infomation AboutMishrimal Ji Maharaj

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
ध्यास्या-प्रज्ञात्ति--व्याख्या करने की प्रज्ञापटुता से ग्रहण किया जाने वाला अथवा व्यायया करने मे সহ भगवान्‌ से कुछ ग्रहण करना व्याख्या-प्रज्ञात्ति है । इसी प्रकार विवाहप्रन्षप्ति और विवाधप्रज्ञप्ति इन दोनों सस्कृत रूपान्तरों का अर्थ भी निम्नोक्त प्रकार से मिलता है--(१) विवाहप्रज्ञप्ति--जिसमे विविध या विशिष्ट प्रवाहो--प्रथ प्रवाहों का प्रज्ञापन-प्रस्पण किया गया हो, उस श्रुत का नाम विवाहप्रज्ञप्ति है। (२) विवाधप्रज्गप्ति--जिस ग्रन्थ में वाधारहित--श्रमाण से अबाधित तत्त्वो का प्ररूपण उपलब्ध हो, वह श्रुतविशेष विवाध-प्रनप्ति हे । विषयवस्तु की विधिधता-- विपयवस्तु की दृष्टि से व्याख्याप्रश्षप्तिसूत्र मे विविधता है। ज्ञान-रत्नाकर णव्द से यदि किसी शास्त्र को सम्बोधित किया जा सकता है तो यही एक महान्‌ शास्त्रराज है। इसमें जैनदर्शन के ही नही, दार्णनिक जगत्‌ के प्राय सभी मूलभूत तत्त्वो का विवेचन तो है ही, इसके श्रतिरिक्त विश्वविद्या की कोई भी ऐसी विधा नही हैं, जिसकी प्रस्तुत शास्त्र मे प्रत्यक्ष या परोक्षरूप से चर्चा न की गई हो 1 इसमे भूगोल, खगोल, इहलोक-परलोक स्वगं-नरक, प्राणिशास्त्र, रसायनशास्त्र, गर्भंशास्त्र, स्वप्नशास्त्र, भूगर्भशास्त्र, गणितशास्त्र, ज्योतिष, इतिहास, मनोविज्ञान, पदार्थवाद, अध्यात्मविज्ञान आदि कोई भी विपय अछूता नही रहा है । इसमे प्रतिपादित विपयो के समस्त सूत्रो का वर्गीकिरण भुय्यतया निम्नोक्त १० खण्डो में किया जा सकता है-- (१) आचारखण्ड--साध्वाचार के नियम, ्राहार-विहार एव पाच समिति, तीनगुष्ति, क्रिया, कमे, पचमहात्रत भ्रादि से सम्बन्धित विवेकसूत्र, सुसाधु, भ्रसाधु, सुसयतः, भ्रसयत, सयतासयत श्रादि के भराचार के विपय मे निरूपण श्रादि । (२) अरव्यखण्ड--षटुद्रव्यो का वर्णन, पदाथंवाद, परमाणुवाद, भन, इन्दि्या, बुद्धि, गति, शरीर प्रादि का निरूपण । (३) सिद्धान्तखण्ड- भ्रात्मा, परमात्मा, (सिद्ध-बुद्ध-मूक्त), केवलज्ञान भ्रादि ज्ञान, भ्रात्माका विकसित एव शुद्ध रूप, जीव, भ्रजीव, पुण्य-पाप, आख्तरव, सवर, निर्जरा, कर्म, सम्यकत्व, मिथ्यात्व, क्रिया, कमेवन्ध एवं कर्म से विमुक्त होने के उपाय आदि । (४) परलोकखण्ड--देवलोक, नरक झादि से सम्बन्धित समग्र वर्णन, नरकभूमियो के वर्ण, गन्ध, रस, स्पशं, का तथा नारको की लेश्या, कर्मबन्ध, भ्ायु, स्थिति, वेदना, श्रादि का तथा देवलोको की सख्या, वहाँ की भूमि, परिस्थिति देवदेवियो की विविध जातिया-उपजातियाँ, उनके निवासस्थान, लेश्या, आयु, कमंबन्ध, स्थिति, सुखभोग, ्रादि का विस्तृत वर्णन । सिद्धगति एव सिद्धो का वर्णन 1 (५) भुूगोल--लोक, झलोक, भरतादिक्षेत्र, कर्मभूमिक, श्रकर्मभूमिक क्षेत्र, वहाँ रहने वाले प्राणियों की गति, स्थिति, लेश्या, कमंबन्ध झ्रादि का वर्णन | (६) सगोल---सूययं, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र, तारे, अन्धकार, प्रकाश, तमस्काय, कृष्णराजि झादि का वर्णन | (७) गणितशास्त्र--एकसयोगी, द्विकसयोगी, त्रिकसयोगी, चतु सयोगी भग श्रादि, प्रवेशनक राशि सख्यात्त, प्रषञ्यात, भ्रनत्त पल्योपम, सागरोपम, कालचक्र आदि 1 (८) गंशास्त्र--गभंगतजीव के श्राहार-वचिदार, नीहार, अगोपाग, जन्म इत्यादि वर्णेन 1 [ १६]




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now