प्रगतिवाद | Pragtivad

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Pragtivad by धर्मवीर भारती - Dharmvir Bharati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उक समीक्षा । १३ माक्सदाद के व्यापक उद्दश्य की अवदहेलना कर साहित्य को अपनी दलगत राजनीति का अस्त्र बना लेना चाहा | माक्स का বাজ খা पूजीवादी विकृृतियों के प्रात विद्रोह और उसके स्थान पर एक स्वस्थ संस्कृति का निर्माण, मगर माक्ध से भी सोगुना अधिक माक्सवादी, उसके अनुयायियों ने प्रगतिवाद को एक व्यापक जीवनदायी सिद्धान्त नहीं रहने दिया और उसे एक कट्दर कठमुल्लेपन मे परिवर्तित ` कर दिया । कुछु राजनीतिक तानाशाहदों ने कहा कि साहित्यकार को जनता के लिए लिखना चाहिये । जनता का भला उसी नीति में है जो दल ' या उसके तानाशाह निर्धारित करते हैं। इसलिए कलाकार को . राजनीतिक अनुशासन में ही रहना होगा । जब यह अनुशासन . का वन्धन श्रायातो स्पष्ट है कि महान कल्लाकार जो शपनी आँखे बन्द करना और अपना दिमाग गिरवी रख देना अपनी कल्ला का अपमान समझते हैं, आखिरकार प्रगतिवादी आन्दोलन से अलग हो गए। फ्रान्स में रोमा रोलाँ और रूस में स्वयं गोकों को इस राजनीतिक तानाशाहो का. विरोध क्रनाष्डा। लेकिन कुछु मानसिक गुलाम कलाकार तथा कुछ सस्ती यशलिप्सा आले मध्यम श्रेणी के कलाकार इस आन्दोलन के साथ हो गए, जिनमें न तो इतना आत्मविश्वास था कि वे स्वयं अपना मार्ग हढ़ निकालें, न इतनी निस्प्ृह्वता थी कि यश के लोभ में अपनी प्रतिमा को राजनीति के हाथ बच देने का लोभ संबरण कर सके | इसका परिणाम यह हुआ कि माक्छवादी ( प्रगतिवादी ) सादित्यिक विचारधारा में दिनों दिन संकीणता, एकांशिता, खोंखलापन ओर बिकृतियाँ आती गई और नतीजा यद दै कि जिस प्रगतिवादी आन्दोलन में एक दिन यह गोकीं, रोलाँ तक सम्मिलित थे, जिसको




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