सूरसागर भाग २ | Soorsagar Part 2
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
31 MB
कुल पष्ठ :
595
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री जगन्नाथदास - shree Jagannathdas
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दर स्ह
बह्य-वाण मैः गर्भ उवास्यो, टेरत जरी जरी,
विपति-काल पांडव-बधु वन में राखी स्याम ढरी ।
करि भोजन अवसेस जज्ञ को! त्रिभुवन-भूख हरी।
पाटः पष्ठ षाड आह सँ लीन्हो राखि करो ।
नच नव रच्छ करी भगतं पर जवं जव विपदि परी ।
मद्रा माह মী परया सूर प्रभु, ऋं ` सुधि विसरी ?॥१६॥
र
ओर न काइुहि जन की पीर ।
अवे ज्व दान इती भयो, तच तब छपा करी बलवीर
गज वल-हीन विलोकि दसो दिसि, तथ ईरि-सरन पर्थौ
करनासिधु. वाल, दरस दै, सव॒ संताप . हस्यो
गोपी-ग्वाल-गाय-योसुत-हित सात दिक्स गिरि सीन
मागथ हत्या, सुक्त चष कीन्हे, भृतक बिघ-सुत ' दीन््यो
श्री रृसिह वपु ध्र्यौ श्रसुर इति, भक्त-वचन प्रतिपारचौ
सुमिरन नाम, दुपद-तनया कौ पट नेक विस्तार
मुनि-मद मेटि. वास-बअत राख्यो, अंबरीष-हितकारी
लाखा-एह ते, सन्रुसेन तै, पांडव-विपति निवारी
वरुन-पाल व्रजपति मुकरायो, दावानल-दुख टारचओ
ग्रह आने वसुदेव-देवकी, कंस महा खलः मारयो
मनन
£ पभू, १७१ (द) एव ससि धैरी--$ ) (क) सोर ।
कमे पनं राख्या गते रः क (न) चट नारायनी 1 2) মত ३
User Reviews
No Reviews | Add Yours...