रविन्द्र-साहित्य भाग - 8 | Ravindra - Sahitya Bhag - 8
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
156
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about धन्यकुमार जैन 'सुधेश '-Dhanyakumar Jain 'Sudhesh'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अभिसार : कविता
क्या हानि, यही होने दो अब, होओ न विसुख, हे देवि सदयः.
सम उर-नभमें हो जागरूक तव देह-हीन नव-ज्योति-निर्चय-।
छाया कल्ङ्कुकी डारेगे उसपर न नयन वासना-मलिन,
तमसावृत उरको नीखोत्र होगा उपरू्ध सदा सब दिन ।
तुमसे निज देव निहारूँगा, तुममे हेरिको पचानूगाः
आलोक तुम्दीसे पाञगा, अपटक अनन्त निशि जागूँगा।
आखिसार
(बोधिसत्वावदान-कल्पलता)
संन््यासी उपगुप्त
एक बार सथुरा नगरीके
ভন पग्राचीर - तले थे सुप्त ,
बुके दीप, खा व्यजन पवनके,
रुद्ध हार थे पोर - भवनके,
सघन गगन-पटमे सावनके
नेश तारकाएँ थीं छुप्त।
किसके नूपुर-शिक्षित पदयुग
सदसा बजे वक्ष॒मे आज
चौंक चकित संन्यासी जगे,
स्वप्र - जार पलकोंसे भागे,
क्षमा ~ मञ्जु नयमोके अगे
रूढ़ दीप था रहा विराज)
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