आचार्य - त्रयी | Aacharya - Trayi
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
174
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)युगबोध और दर्शन/१५
है, जिसे उन दिनो की घटनाओ का पूर्ण विवरण ज्ञात हो अथवा जिसे उन दिनों
की पूर्ण स्थिति का ज्ञान हो ।
शकर के जीवन अध्ययन से हमे प्रतीत होता है कि उनका उद्देश्य अधार्मिक
तत्वों का पूर्ण विनाश और धर्म की स्थापना था । अपने उद्देश्य की पूर्ति के
लिए उन्हे शास्त्रार्थ, तक ओर सवषं का सहारा लेना पडा 1 उनके जिन सिद्धान्तो
का रामानून या वल्लभाचार्य ने आलोचना या खण्डने किया, इसका कोई
महत्वपूर्ण औचित्व प्रतीत नहीं होता | शकर দ্ধা আইল सिद्धान्त दार्शनिक
जगत मे विशेष महत्व का विषयं हे । ब्रह्म, माया, प्रकृति और सृध्टि इसके
विशेष मुद्दे है। समस्त ससार में आज भारतीय दर्शन ने शकराचार्य के
नाम से जितनी प्रसिद्धि पाई है, उतनी न किसी अन्य आचार्य के नाम से, न किसी
ग्रन्थ के नाम पर सम्भव हो सका है । शकर सिद्धान्त इतना व्यापक हुं कि
भारतीय और विदेशी सभी दाशंतिक विद्वानों को अपनी ओर आकर्षित किया
है । शकराचार्य ৯ অন্ন से कुछ पूवं बौद्धो ने दक्षिण भारत मे अपना प्रभुत्व
स्थापित कर लिया था और वैदिक सम्प्रदाय का विनाश करने के लिए हर प्रकार
से तत्पर रहते थे । उनके अपने समय में भी सुनियोजित ढग से बौद्ध अपना
षपड्यत्रकारी कार्यकम चलाते रहे । यो उनमे विभाजन हो गया था ओर वे प्राय:
अपरयादित हो गये थे, फिर भी सनातन धर्म पर उतका कुठाराधात व्यापक रूप
से होता था।
शकराचार्थं के गुरु गोविन्दाचार्य थे ओर परम गुरु गौडपाद थे। ग्ौडपाद
ने माण्डुक्य उपनिषद पर एक महत्वपूर्णं कारिका-ग्रन्थ लिखा है । यहं ग्रन्थ
बौद्ध दर्शन से प्रभावित है और शकराचार्य इन्ही गौडपाद से प्रभावित थे ।
इसी आधार पर उन्हे प्रच्छन्न बौद्ध मान लिया गया । यह सर्वथा अनुचित था ।
क्योंकि वैदिक धर्म को बोछो के कुठाराघात से रक्षा और उसे पनर्जीवित करने
के उद्देश्य से उन्होंने 'बरह्मसूत्र” की टीका लिखी और उसके द्वारा वेदिक धर्म
के महत्व और गरिमा को स्थापित किया । ब्रह्मसूत्रो' पर प्रानीन दीका
शकराचार्य को ही है ।
, वास्तव में शकराचार्य का उद्देश्य अद्वेत मत की स्थापना था। उनके पूर्व
भी अद्वेत की चर्चा महाभारत आदि प्राचीन प्रन्थो में मिलती है। प्रत्यक्ष और
अप्रत्यक्ष रूप से महाभारत में अद्वेत मत के समर्थन में बहुत बाते कही गई है ।
शकर ने माया की तुलना साँप और रस्सी से को हैं। वस्तुत* आज के युग से
इसे नही स्वीकारा जा सकता । शकर ते माया को न सत् ओर ন অয়ন সানা,
है। यह सत्य है कि ब्रह्म के अतिरिक्त कोई भी वस्तु प्रत्यक्ष रूप से वेदान्त मत
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