कड़वी मीठी बातें | Kadavii Miithii Baaten
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
145
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ज्वाला परचूनी
ज्वाला की उम्र काफी हो चुकी हे, करीब उनसठ$साल | पर वह रोज
चार घड़ी के तड़के उठ जाता है--कुछ तो इसलिये कि वह अकेला है
ओर घर का सब काम-काज खुद उसी को करना पड़ता हे, लेकिन खासकर
इसलिये भी कि जब तक वह नहा धोकर कस्बे के छोर पर अपनी छोटी
दूकान तक पहुँच नहीं जाता, पास पड़ोस के लोग अपने घरों के दरवाजे
खोलना पसन्द नहीं करते । लोग सुबह-सुबह उसका मुंह देखने का जोखिम
उठाना नहीं चाहते, कहते हैं वह करमहीन है ।
ज्वाला रोजी के मामले में करमहीन नहीं है। आज तक किसी के
सामने उसने दो पैसे को भी हाथ नहीं पसारा। हमेशा अपने पाँवों पर
ही खड़ा रहा है। ज्वाला के बचपन की बात तो अब अतीत की बात हो
चुकी है। लेकिन जहाँ तक सुना है यही कि जब से माँ-बाप मरे, उसने
किसी का सहारा नहीं तका और न कभी किसी का आसरा ही लिया |
माँ तो ज्वाला के जन्म के दो महीने बाद ही मर चुकी थी और बाप
भी ताऊन की पहली महामारी में उसे नो साल का छोड़कर चल बसे थे।
ज्वाला को लोग मूलिया कहते हैं। मोहल्ले की बड़ी-बूढ़ियों का तो रोज
का कहना है कि देखों तो वह बचपन में ही माँ-बाप को खागया।
किन मुसीबतों में उसका बचपन बीता और किन मशक्कतों मं घिस-
पिस कर वह बड़ा हुआ यह पूरी तरह से कोई नहीं जानता । क्षेकिन यह
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