प्रभात फेरी | Prabhatferi

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Prabhatferi by नरेन्द्र - Narendra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मावी सन्तति म भविष्य के तिमिर-गमं में वल-सथ्चय-दितं वालारुण-से कुछ दिन श्रमी करेगे शयने !! ज्याला का क्या वशु, वरं है बस सुवणं दी, साम्य-गान रहै, तप्त-स्वणं की वनी देह यद, क्म, पूणं तप - श्नुष्ठन है ! वणंदीन समान पतित को उठा, शक्ति दंगे प्रलयङ्कर, छनयन्रित शासन से पोप्रित वैभव को हर भस्मभूत कर । मेघाच्छादित विश्व व्योम से विद्यत्‌-घारा मे, श्पनी पर, इस दरने श्रातक, वञ्च वन उमड़ पड़ेंगे घन-गजंन कर । पवेत के प्रतिथ्वनित नाद-से जय जय कर जय-घोष भयकर, फूट पडंगो तडक तडिति-से कम्पित कर प्रवनी शरो शम्बर । वह्‌ प्रकाश दोगा भविष्य फा श्रसी देश में कुछ दिन रेन! हम भविष्य के तिमिरगभं म पुल सखय हित चालारुण-सें यछ दिन श्भी करगे शयन 1




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