साहित्य विवेचन | Sahitya Vivechan

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Sahitya Vivechan by क्षेमचन्द्र 'सुमन'-Kshemchandra 'Suman'योगेन्द्र कुमार मल्लिक -Yogendra Kumar Mallik

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क्षेमचंद्र 'सुमन'- Kshemchandra 'Suman'

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योगेन्द्र कुमार मल्लिक -Yogendra Kumar Mallik

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका णु की होती है। फिर भी व्यापक, अनुभूत और निरापद होने की दृष्टि से यही शैली सर्वाधिक उपदेह! ` हमें यह देखकर प्रसन्नता हुई कि प्रस्तुत पुस्तक 'साहित्य-विवेचन' में इसी साहित्यिक समीक्षा-शैली का व्यवहार हुआ है, जिससे यह पुस्तक किसी भी श्रति- वादी दृष्टि या सतवाद से ऊपर रहकर उनका सम्पक्‌ उपयोग करने में स्वतस्त्र रह सकी ह । कही, किसी विशेष कवि या लेखक के प्रति, कोई श्रतिरंजित विचार মা লিযান श्रा गया हो, यह श्रसम्भव नहीं । यह्‌ भी सम्भव ह कि समीक्षा की समाज-शास्त्रीय या मनोविज्ञानिक विधियो का उपयोग करने पर कुछ श्रधिक सारपुणं विवरण और आकर्षक तथ्य प्रस्तुत किग्रे जा सकते थे। किन्तु तब यह विसम्भावना भी बनी रहती कि पुस्तक के अनेक निर्मेष साहित्यिक दृष्ठि से अधिक संशयास्पद हो जाते । चर्तमान रूप में यह पुस्तक साहित्य के चिभिन्‍्त रूपों पर अच्छा प्रकाश डालती है और हिन्दी के विविध काव्पाज़ों के . विकास- क्रम का एक व्यवस्थित विवरण भी उपस्थित करती है। हम निस्संक्रोच कह सकते हैँ कि अपने वियय की उपलब्ध हिन्दी-पुस्तकों से यह किसी प्रकार पीछे नहीं है, बल्कि इसमें कई नए वियय श्रौर उनकी नवीन व्याख्याएँ भी प्राप्त होतो हूं । इसका विवेचन गम्भीर है, इसकी व्याख्याएँ समन्‍्तुलित हैं, और इसकी भाया- शैली प्रोढ़ और परिष्कृत है। पुस्तक हिन्दी के प्रत्येक विद्यार्थो के काम की है। श्रतएवे हम श्रा्ञा करते हँ क्रि इसका हिन्दी-संसार में उचित स्वागत श्रौर सम्मान होगा सागर-विश्वविद्यालय | नर भ १३ जुलाई, ५२ न्द्दुलारे बाजपेयी




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