दर्शनसंग्रह भाग 1-2 | Darshan Sangrah Voll.i-ii

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Darshan Sangrah Voll.i-ii by आत्मानन्द - Aatmanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दर्दानसयरह १7 समझ लिया कि बधन-दुःख स्वाये का मूल अहत्व ममत्व है. उसके छेडने और नीति सयम साम्य भावके थिना समाज पर उपकार नहीं हे सकता इस ठिये चुडने शब्द प्रमाण के सिनारे रख के स्वतत्र यह उपदेश क्या इसका उपदेश नाना मत की निवृत्ति के ठिये हथियार बन गया. उसके पीछे यह मंतव्य मी वौद्ो द्वारा ही प्चो वा विपय हे गया. तपके विह्नन विपयासक्ति नहीं छूट सकती जनासक्ति के बिना परमार्थ पाने के याग्य नहीं हे सकता. और अहिंसा प्रतिपादन के बिना उपयेगी वनस्पति पशु पक्षी वी रक्षा नहीं हे सकती ऐसे गत सम्कारा की आपत्ति हाने पर महावीर स्वामी ने तप और अहिंसा का उपदेश किया उसके पीठे इस वाध पर भी उक्त पाचा सम्कार हुये ३ बौड और जैन द्वारा अनीश्वर वाद पसरा था. शफराचाय का उद्दश था कि वेदवोधक ईश्वरवाद के अभावसे परिणाम में महान हानी है इस लिये एफ २ जीव चर्म रूप है ऐसा सिद्ध कर बताया और बीद्ध जेन के आसक्ति नाशक अशफे विरेाधी न पड़के उनसे उद्रपद्धति अर्थात्‌ जगत स्वप्वतत मिथ्या है एसा प्रतिपांदन किया. श्रुति का प्रचार हुवा उनके पीछे उसका मतव्य भी पचका विषय हुवा 2८ ४ व्तमानमें बुद्धि कम हे गई बेढ़ शाख्र रुप्नति समझने की योग्यता न रही अवेदी मत का प्रवाह चला है उसके अरकाना नाना मत फेल गये झाब्द पर विश्वास न रहा प्रमाणको अपूर्णता है कलि काठ में ईश्वर वी भक्ति मुर्यत। नाम भक्ति के विना दयातिफल नही मिठता एसे | विचारा पर पुराण भावना पेदा हुई # जीर भक्ति पक्ष द्रढानेकी केाशीश चली परतु चाशनी गाने बिना और परधर्मी निंदा स्तुति रूप न जाने वहा तक मन्ृत्ति न होगी इस ठिये ठीक नहीं एसी रगत में केई म्रथ हुवा फेर मन मुखी पृथा के अथ चले... प्रथमता ये आपही पच सम्कारा के रूप थे उसप९ वे पुन पच सस्कारा के विपय बने ५ उपराक्त दशा प्राप्तिने ही वस न किया क्तु अनेक सप्रदाय मत पथ बाढ़े इनकी शाखा उपशाखा च्छ पड़ी ओर नवीन हेती जाती है 3 झावर वेदात म भी अनेक पस है. दा. जम सत्य जगा मथ्या यह ख्र मानते है के पुराण मविता प्रतिप दक पुराण ग्रथ कय चने इस में विवाद है




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