थेरी गाथाएं | Theree Ghathayein

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Theree Ghathayein by डॉ. भरतसिंह उपाध्याय - Dr. Bharatsingh Upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पटला चर्म ड पूर्ण ! तू पूर्णता प्राप्त कर पूर्णमासी के ( पूर्ण ) चन्द्रमा की तरह तृ कल्याणकारी धर्मा में पूणता प्राप्त कर । प्रद्षा की।परिपृर्ण ता से तू अन्धकार-पुंज को बिदीण कर देगी ॥३॥ ९, .तिष्या--१ उन्‍्म-स्थान कपिलवस्तु, शाक््यकुल सें जन्म ! महाप्रजापती के साथ प्रवज्या अहण कर अन्तर्दष्टि की लाधना सें लग गई । पूर्वोच्ध पूर्णा की तरह दी ठिप्या ने अपने लिए अभिप्रेद संप्रहपक चुद्धन्याथा को सुना, जिसकी पुनरावृत्ति उसने की । ठिप्वे ! तू तीन शिक्षाओं' को सीख | देख, बन्धन (योग) तरा अतिक्रमण न करें ! सभी वन्धनों से दूर रहकर तू निर्मल चित्त स इस लोक मे विचरण कर 1211 ४. तिष्या--२ £ से १०. स॑स्यक मिक्ुणियों को जीवनियां प्रायः उपयु क्त ছা के ही समान हैं। ये सब कपिलवस्तु-वासिनी शाक्य-ऊुल की महिलाएँ थीं, जिनकी प्रवज्या महाप्रजापतों गोठमी के साथ हुईं । तिष्ये । तू कल्याणकारी घर्मो के सेबनन में लग। देख, तेरा समय निकल न जाय | जिनका समय निकल गया, उन्हें दुर्गेति में पडकर सदा शोक ही करना पड़ता है ॥शा। ६. घीरा--१ . धीरा! तू उम समाधि का स्पशं कर, जहां स्र चित्तवित्षेपों ६. शील, समाधि झौर प्रज्ञा सम्बन्धी शिक्षाएँ | २. चोय (बन्धन) चार हैं; काम, झव, मिध्या दृष्टि और अविया ।




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