थेरी गाथाएं | Theree Ghathayein
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
136
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पटला चर्म ड
पूर्ण ! तू पूर्णता प्राप्त कर पूर्णमासी के ( पूर्ण ) चन्द्रमा की
तरह तृ कल्याणकारी धर्मा में पूणता प्राप्त कर ।
प्रद्षा की।परिपृर्ण ता से तू अन्धकार-पुंज को बिदीण कर
देगी ॥३॥
९, .तिष्या--१
उन््म-स्थान कपिलवस्तु, शाक््यकुल सें जन्म ! महाप्रजापती के
साथ प्रवज्या अहण कर अन्तर्दष्टि की लाधना सें लग गई । पूर्वोच्ध
पूर्णा की तरह दी ठिप्या ने अपने लिए अभिप्रेद संप्रहपक चुद्धन्याथा
को सुना, जिसकी पुनरावृत्ति उसने की ।
ठिप्वे ! तू तीन शिक्षाओं' को सीख | देख, बन्धन (योग)
तरा अतिक्रमण न करें !
सभी वन्धनों से दूर रहकर तू निर्मल चित्त स इस लोक मे
विचरण कर 1211
४. तिष्या--२
£ से १०. स॑स्यक मिक्ुणियों को जीवनियां प्रायः उपयु क्त ছা
के ही समान हैं। ये सब कपिलवस्तु-वासिनी शाक्य-ऊुल की महिलाएँ
थीं, जिनकी प्रवज्या महाप्रजापतों गोठमी के साथ हुईं ।
तिष्ये । तू कल्याणकारी घर्मो के सेबनन में लग। देख, तेरा
समय निकल न जाय |
जिनका समय निकल गया, उन्हें दुर्गेति में पडकर सदा शोक
ही करना पड़ता है ॥शा।
६. घीरा--१ .
धीरा! तू उम समाधि का स्पशं कर, जहां स्र चित्तवित्षेपों
६. शील, समाधि झौर प्रज्ञा सम्बन्धी शिक्षाएँ |
२. चोय (बन्धन) चार हैं; काम, झव, मिध्या दृष्टि और अविया ।
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